
उदयपुर . जन्म से शिशु का धीमा विकास, आम लोगों से नजरें बचाना, उसका देरी से बोलना और स्कूल में सामान्य बच्चों से पिछड़ा होना। बच्चे की यह असामान्य दिखने वाली प्रकृति उसके भीतर छिपी बीमारी का संकेत है। भारत में इस बीमारी को लेकर विशेषज्ञों का ध्यान कम ही जाता है, जिसे चिकित्सा विज्ञान की भाषा में ‘ऑटिस्म रोग’ कहा जाता है।
यह बात अमरीका के नॉर्थ टेक्सास में कार्यरत डॉ. रीना भार्गव ने शनिवार को महाराणा भूपाल राजकीय चिकित्सालय के बाल चिकित्सा विभाग के नेतृत्व में आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता कही। बाल चिकित्सा विभाग एवं भारतीय शिशु अकादमी के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. भार्गव ने कहा कि भारत में हर 68 बच्चों में एक बच्चे में यह रोग पाया जाता है। किसी में कम तो किसी बच्चे में बीमारी के लक्षण अधिकता में मिलते हैं। उन्होंने कहा कि लड़कियों की अपेक्षा लडक़ों में यह रोग 5 गुना अधिक होता है।
समझने वाले लक्षण
- बच्चा देर से बोलना शुरू करता है या फिर उसकी बोली जाने वाली अलग तरह की होती है।
- एक वर्ष की उम्र में बच्चे का नाम पुकारने पर उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती। चेहरे में भाव कम होते हैं।
- ऐसे बच्चे अक्सर अपनी की धुन में रहते हैं। दूसरे बच्चों और बड़ों से घुलना-मिलना उन्हें अच्छा नहीं लगता।
- एक ही तरह की हरकतें करना या फिर एक ही काम को बार-बार करने की प्रवृत्ति ऐसे बच्चों में ज्यादा होती है।
- संबंधित लक्षण दिखते ही रोग विशेषज्ञों या चाइल्ड साइक्रोलॉजिस्ट से बच्चे की जांच कराने में देरी नहीं करनी चाहिए।
उपचार के तरीके
- ब्हेवियरल थैरेपी
- स्पीच थैरेपी
- वोकेशनल थैरेपी
- सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ाने पर जोर रखे।
- विशेष प्रशिक्षित शिक्षक का होना भी जरूरी।
व्याख्यान के दौरान भारतीय शिशु अकादमी के नवनिर्वाचित प्रदेश प्रतिनिधि एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लाखन पोसवाल, अकादमी के वरिष्ठ सदस्य डॉ. प्रकाश भंडारी, डॉ. करुणा भंडारी, डॉ. आरएल सुमन, डॉ. प्रदीप मीना, डॉ. संजय मेहता, डॉ. अनुराधा सनाढ्य, डॉ. मोहम्मद आसिफ, डॉ. राजेंद्र चंदेल व रेजिडेंट डॉक्टर्स उपस्थित थे।
Published on:
26 Nov 2017 12:45 pm
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