
उदयपुर में लिनी की खोज में सामने आए दो ऐसे समर्पित लोग जो मरीजों की सेवा करते-करते ही दुनिया को कह गए अलविदा
भुवनेश पंड्या/उदयपुर. उदयपुर में लिनी की खोज में पत्रिका को दो ऐसे समर्पित कर्मी सामने आए जो अर्से पहले हॉस्पिटल में कहीं गुम हो गए थे। स्टाफ यदा-कदा इनकी चर्चा तो करता है, लेकिन सबके लिए यह बात पुरानी हो गई। पत्रिका ने पड़ताल की तो पता चला कि मरीजों की सेवा करते-करते कोई खुद बीमार होकर दुनिया से ही चला गया। उपचार का प्रयास तो हुआ, लेकिन कोई उसे बचा नहीं पाया। पत्रिका की लिनी सीरिज में आज बात होगी दो ऐसे नामों की जिस पर समय के साथ गुमनामी में कहीं खो गए। फोटो खोजने की कोशिश की गई, लेकिन उपलब्ध नहीं हो पाई।
अहमदाबाद में इलाज भी नहीं बचा पाया जान
दिनेश मेनारिया: वर्ष 1992-93 में मेडिकल वार्ड में काम करने वाले दिनेश मेनारिया किसी मरीज से ऐसे संक्रमित हुए कि उनकी मौत हो गई। उदयपुर और अहमदाबाद में दिनेश का उपचार कुछ दिन चला लेकिन कोई दिनेश को बचा नहीं पाया। पूरा हॉस्पिटल उनके संक्रमण के बारे में जानता है, पूरा स्टाफ उन्हें कभी-कभी याद कर सचेत रहने की सलाह भी देता है, लेकिन सवाल व्यवस्थाओं पर भी खड़े होते है कि आखिर सेवा के इस काम में सुरक्षा की दीवार भी उतनी ही जरूरी है कि जितनी मरीज को बचाने के लिए की जाने वाली मशक्कत। मृतक दिनेश के चचेरे भाई राजेश ने बताया कि उन्हें हेपेटाइटिस हो गया था। बचाने का प्रयास तो किया, लेकिन बचा नहीं पाए। संक्रमण के बाद उन्हें बहुत परेशानी हुई थी। उनके साथी और करीबी दोस्त ओम जोशी कहते है कि दिनेश कड़ी मेहनत से काम करते थे, किसी बीमारी के संक्रमण के कारण उनका जाना अब भी सालता है।
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हेपेटाइटिस ने ली जान
कृष्णकुमार पारीक: बात 1984 की है, जब पारीक लैब टेक्नीशियन थे महाराणा भूपाल हॉस्पिटल में। नर्सेज अधीक्षक कार्यालय में कार्यरत उनके भाई गोविन्द पारीक ने बताया कि करीब 27 वर्ष की उम्र में संक्रमण से उनकी मौत हो गई थी। पारीक ने बताया कि मृतक भाई का कुछ माह उपचार चला लेकिन उन्हें कोई बचा नहीं पाया। कृष्णकुमार भी हेपेटाइटिस का शिकार हो गए थे।
Published on:
01 Jun 2018 04:51 pm
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