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Panther Terror: छह दिन से न कोई शिकार, ना कहीं पग मार्क… एक ही सवाल आखिर कहां गया आदमखोर पैंथर

वन विभाग ने रणनीति बदली, फिर भी पकड़ से दूर, अब जयपुर से आई नई इमरजेंसी रेस्पॉंन्स टीम ने संभाला मोर्चा

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आदमखोर पैंथर के हमले से बचने के लिए ग्रामीणों से समझाइश करते पुलिसकर्मी। 

उदयपुर.गोगुंदा. गोगुंदा क्षेत्र में सात जनों को शिकार बना चुके आदमखोर पैंथर को पकड़ने के लिए वन विभाग की ओर से चलाए गए स्पेशल ऑपरेशन का पहला चरण पूरा हो गया, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी। जयपुर से आई पहली इमरजेंसी रेस्पॉंस टीम (इआरटी) सोमवार को वापस लौट गई। तीन दिन के ऑपरेशन में पैंथर की लोकेशन ट्रेस नहीं हो पाई। ना ही कहीं पग मार्क मिले। अब जयपुर से दूसरी इआरटी उदयपुर पहुंच चुकी है। जबकि फील्ड में लगी टीमें अपनी-अपनी जगह तैनात हैं। बताते चलें कि पैंथर को केलवों का खेड़ा में अंतिम बार गुरुवार को देखा गया था, जब उसने दो जनों पर हमला करने की कोशिश की। इसके बाद वन विभाग ने स्पेशल ऑपरेशन के तहत पैंथर के सर्च अभियान में लगी टीमों की संख्या को बढ़ाया। पैंथर के मूवमेंट को कैच करने ट्रैप फ़ोटो कैमरा की संख्या भी बढ़ाई गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। पैंथर ने एक अक्टूबर को केलवों का खेड़ा में कमला कुंवर पर हमला कर मार डाला था। जिसके बाद जंगल में बड़े पैमाने पर सर्च अभियान शुरू किया। छह दिन निकल जाने पर भी पैंथर का कहीं कोई मूवमेंट दिखाई नहीं दिया। ना उसने किसी जानवर का शिकार किया और ना ही कहीं पग मार्क देखे गए है। वन विभाग का मानना है कि पैंथर जंगल और संभावित प्वाइंट पर इंसानों की गतिविधियां भांप लेता है। हालांकि महिला पर हमले के दो दिन बाद उसी घर के आसपास पैंथर का मूवमेंट रहा। केलवों का खेड़ा में मां बेटे ने पैंथर को देखा था, जो हमले की फिराक में था।

नई टीम ने संभाली कमान

सोमवार को नई इआरटीराठौडों का गुढ़ा पहुंची, जो 9 अक्टूबर तक स्पेशल ऑपरेशन चलाएगी। टीम में अतिरिक्त प्रधान वन्य जीव संरक्षक (वाइल्ड लाइफ) राजेश गुप्ता, रणथंभौर के फील्ड डायरेक्टर अनूप केआर और केवलादेव नेशनल पार्क भरतपुर के डीसीएफ मानस सिंह शामिल हैं। इससे पहले वाली टीम में सीसीएफ वाइल्ड लाइफ जयपुर टी. मोहन राज, सरिस्का फील्ड डायरेक्टर संग्राम सिंह और रामगढ़ विषधारी डीसीएफ संजीव शर्मा थे। पहली टीम ने रविवार तक गोगुंदा में ऑपरेशन को अंजाम दिया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

अब जंगल में आवाजाही कम

लगातार सर्च अभियान चलाने के बाद भी पैंथर संभावित स्थानों की ओर देख नहीं रहा। अब वन विभाग रणनीति के तहत क्षेत्र में आवाजाही कम कर रहा है। पहले से लगी 13 टीमें अपनी-अपनी जगह मोर्चा संभाले हुए हैं। इन टीमों में 12 शूटर भी हैं। वन विभाग के एक-एक रेंजर इन टीमों का नेतृत्व कर रहे हैं। इन टीमों में वनकर्मी, पुलिस व स्थानीय स्वयंसेवक शामिल हैं। पूरे ऑपरेशन के संचालन के लिए पांच ग्रुप बनाए हैं। जिम्मेदारी क्षेत्रीय वन अधिकारी स्तर के एक-एक अधिकारी संभाल रहे हैं।

ललचाने के लिए इंसान की डमी लगाई

पैंथर का मूवमेंट नहीं दिखाई देने व इतने दिन तक शिकार नहीं करने पर प्रशासन को अंदेशा है कि कहीं पैंथर आसपास के क्षेत्र में जाकर कोई हमला नहीं कर दे। जिसके लिए ग्रामीणों की सुरक्षा के इंतजाम किए हैं। इसके लिए केलवों का खेड़ा और राठौड़ों का गुड़ा गांव के बीच में 13 सुरक्षा प्वाइंट चयनित कर वहां टीमों को तैनात किया है। यह एक तरह से ग्रामीणों के लिए सुरक्षा घेरा है। पैंथर के मूवमेंट को ध्यान में रखते हुए 6 प्वाइंट चयनित किए हैं। जहां 6 थानों के इंस्पेक्टर को जिम्मेदारी सौंपी है। मॉनिटरिंग और रिजर्व जाब्ते की तैनाती के लिए 10 टीमें अधिकारी रैंक की बनाई हैं। इस सर्च ऑपरेशन में डेढ़ सौ से अधिक कर्मचारियों का जाप्ता तैनात है। पैंथर को ललचाने के लिए जंगल में आदमी की डमी रखी है। वहीं मादा पैंथर का यूरिन मंगवाकर उसे जंगल में लगाए गए पिंजरों के आसपास छिड़का गया है।