
विमंदित बेटे की परवरिश करते करते हार गया पिता, अब जिंदगी बन गई मुसीबत न तन ढकने को कपड़े, ना बुझ रही पेट की आग
कमला शंकर श्रीमाली
भींडर.कानोड़ .(उदयपुर). जिंदगी किसी किसी के साथ बहुत क्रूर मजाक करती है। सांसें देती है, मगर सम्मान से जीने का हक छीन लेती है। कुछ ऐसी ही कहानी है कानोड़ से महज दो किमी दूर चित्तौडग़ढ जिले के डूंगला तहसील की अन्तिम छोर के गांव गोड़ों का खेड़ा निवासी पिता-पुत्र की। विमंदित पुत्र की सत्रह साल से परवरिश करते करते पिता भी अपना दिमागी संतुलन खो चुका है। अब न दोनों के खाने पीने का कोई बंदोबस्त है, न ही तन ढ़कने को कपड़े। बेसुध बेटा निर्वस्त्र रहकर जिन्दगी निकाल रहा है तो पिता फटे कपड़ों से तन ढककर। खाना पीना मिल जाए तो उनकी किस्मत।
ये दर्दभरी कहानी है ग्राम पंचायत रावतपुरा के गांव गोड़ों का खेड़ा गांव निवासी 65 वर्षीय हरि सिंह गौड़ और उनके 30 वर्षीय इकलौते पुत्र पूरण सिंह की। पूरण की मानसिक स्थिति बीते 17 वर्ष से ठीक नहीं। बगैर कपड़ों के खेत में ही हर मौसम की मार झेलते हुए जीवन काटने को मजबूर। विमंदित बेटे की परवरिश करते पिता हरि सिंह भी अस्वस्थ रहने से उसकी सार संभाल मुश्किल हो गई। पिता जब ठीक होते हैं तो बेटे को संभाल लेते हैं।
आंखों में आंसू के सिवा कुछ नहीं
आंखों में आंसू लिए हरि सिंह बताते हैं कि जिसको जीने का सहारा मानकर बड़ा किया, दसवीं तक पढाया लिखाया आज उसकी ही परवरिश करना पड़ रही है। वे बताते हैं कि पूरण यात्रा की बसों पर जाकर मजदूरी करता था। सूरत, अहमदाबाद सहित बड़े शहरो में काम किया। लेकिन अचानक वह मानसिक रूप से बीमार होने से परिवार पूरी तरह टूट गया। दर्द इतना है कि पिता कहते हैं इस जिंदगी से भला भगवान मौत दे दे। पूरण सिंह की मां काे गुजरे भी करीब एक वर्ष हो गया। जिससे खाने पीने के भी लाले पड़ गए।
कभी मांगकर तो कभी इंदिरा रसोई से बुझा रहे पेट की आग
पेट की आग बुझाने के लिए वे कभी गांव से मांगकर तो कभी इंदिरा रसोई से इंतजाम करते हैं। परिवार की पीड़ा को देखते हुए गांव का युवा नरेन्द्र सिंह गौड़ सुबह व शाम को इंदिरा रसोई से खाना उन तक पहुंचा रहा है। जिस दिन यह युवा कहीं बाहर चला जाए उस दिन दोनों को भूखा ही रहना पड़ता है।
काश कोई फरिश्ता बनकर आए
हरि सिंह के परिवार में पुत्र पुरण सिंह के अलावा एक पुत्री मुन्ना कुंवर है। जिसकी शादी हो चुकी है और वह अन्यंत्र रहती है। अपने परिवार की जिम्मेदारी के चलते वह कभी कबार पिता व भाई से मिलने आ पाती है। पत्रिका से चर्चा में मुन्ना कुंवर का गला रुंध गया। वह कहने लगी कि भाई के इलाज के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। वह इनके हालात से दुखी, लेकिन बेबस है। शहर में इस हालत में साथ रखना मुश्किल है। काश कोई उनके लिए फरिश्ता बनकर आए।
Published on:
22 May 2023 02:29 am
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