
आंगनवाडिय़ों में पोषाहार की गुणवत्ता जांचने में हो रही है खानापूर्ति, चल रहा मिलावट का खेल
चंदनसिंह देवड़ा/उदयपुर.सियाचीन ग्लैश्यिर में देश की रक्षा करते हुए बर्फ की वजह से एक पैर गंवा चुुके मगरा क्षेत्र के सेवानिवृत हवलदार ने खेती में ऐसा नवाचार किया है कि जय जवान-जय किसान का नारा बुलंद हो रहा है। भीम क्षेत्र के रहने वाले मोतीसिंह ऑर्गेनिक पॉलीहाउस में कई तरह की सब्जियों को प्रयोग के तौर पर उगाते हुए उन्हें बाजार में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रहे है। इस बार इन्होंने एक फीट 2 इंच लम्बी देशी मिर्च तैयार की है। अमूमन इस मिर्ची की लम्बाई 5 से 6 इंच ही हो पाती है। सेना में सेवा देने के बाद खेती में इनके नवाचार को देखकर इन्हे अब तक राष्ट्रीय एवं अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर 18 पुरस्कार मिल चूके है। खेती में नवाचार से यह रिटायर्ड फौजी सालाना 3 से 4 लाख रुपए कमा रहा है।
7 रंग की मिर्च भी उगा चुुके...
मोती सिंह बताते है कि उन्होंने इससे पहले हरी, पिली, लाल, काली, नारंगी, गुलाबी और सफेद रंग की मिर्च के पौधे तैयार कर पैदावार भी ली लेकिन बाजार में हरी, पीली एवं लाल के अलावा दूसरे रंग की मिर्च का पंसद नहीं किया जिससे उन्होंने उसको उगाना बंद कर दिया। यहीं नहीं इन्होंने पपीते के पौधे पर कद्दू, बैंगन पर टामटर की कलम लगाकर पैदावार भी ली है। दावा किया जा रहा है कि अब तक देशी मिर्च की लम्बाई 1 फीट 3 इंच गिनिज बुक में दर्ज हे ऐसे में वह इस रिकार्ड को तोडऩा चाहते हैंं।
सब्जियों पर वर्मी वॉश का छिडक़ाव
अपने पॉली हाउस में मोती सिंह किसी तरह का पेस्टीसाइड का छीडक़ाव नहीं करते है। उन्होंने वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए छोड़े केंचुुओं से ही तैयार वर्मी वॉश (केंचुए धोकर एकत्रित पानी) को सब्जियों पर छीडक़ाव करने के काम लेते है जिससे पैदावार अच्छी मिलती है। इसके अलावा नीम, आक, धतुरा, सीताफल, मिर्च, अदरक, तम्बाकू, लहसून से तैयार पाउडर और पानी इने पर छीडक़ते है। पॉली हाउस में आने वाले दुश्मन कीड़ों को मारने के लिए 200 स्लाइड रंग बिरंगी लगाकर उने पर ग्रीस का लेप कर देते है। इससे आकर्षित होकर किड़े उस पर चिपक जाते है और सब्जियों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते।
सीमा पर पैर से लाचार हुए तो गांव लौट खेती पर जोर
राजसमंद के भीम में स्थित जस्साखेड़ा निवासी मोती सिंह आरटी ऑपरेटर हवलदार पद पर थे। सियाचिन ग्लेश्यिर में तैनातगी के चलते बर्फ से उनका पैर नाकाम हो गया। ऐसे में वह सेवानिवृत लेकर खेती करने गांव आ गए। सवा चार बिघाजमीन में आमदनी कम थी ऐसे में एमपीयूएटी उदयपुर व जयपुर के कृषि वैज्ञानिकों की मदद से उन्होंने पॉलीहाउस खेती शुरू की। इसे देख कई युवा प्रेरित होकर खेती की राह चुन रहे है।
Published on:
14 Nov 2019 01:29 pm
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