
Pilibhit Lok Sabha Constituency: साल 1989 में जनता दल से मेनका गांधी ने राजनीति की शुरुआत की थी। तराई के लोगों ने मेनका गांधी को सिर-आंखों पर बैठाया। जनता ने तोहफे में जीत दी। दो साल बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के परशुराम गंगवार से मेनका गांधी हार गईं थीं।
साल 1996 में मेनका गांधी ने फिर जनता दल से चुनाव लड़कर हार का बदला लिया था। फिर साल 1998 और 1999 में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतती रहीं। साल 2004 में मेनका गांधी ने भाजपा का दामन थामा और जीत हासिल की।
साल 2009 में उन्होंने अपनी राजीतिक विरासत बेटे वरुण गांधी के हवाले करके सुल्तानपुर चली गईं। वोटरों ने भी वरुण को हाथोंहाथ लिया। वह रिकॉर्ड मतों से जीते। राजनीति में वरुण गांधी युवाओं की पहली पंसद बन गए। वर्ष 2014 में मेनका फिर पीलीभीत से लड़कर जीतीं और वरुण सुल्तानपुर से जीते। बाद में 2019 में फिर पीलीभीत से सांसद बने। मेनका यहां से छह बार व वरुण दो बार सांसद रहे। 1996 से अब तक इनका परिवार ही लगातार काबिज हैं। बुधवार को नामांकन दाखिल करने का समय समाप्त होने के साथ ही मां-बेटे का पीलीभीत से नाता भी टूट गया।
नामांकन दाखिल करने का समय समाप्त होने के साथ ही मेनका-वरुण का पीलीभीत सीट से नाता टूट गया। 35 वर्ष पुराने रिश्ते में कभी मेनका तो कभी वरुण जिले के लोगों से जुड़े रहे। लोकसभा चुनाव से कुछ माह पहले से ही वरुण गांधी का टिकट कटने की चर्चाएं होनी लगी थीं। कयास भी यह भी लगाया जा रहा था कि वरुण पीलीभीत से निर्दल चुनाव लड़ सकते हैं। नामांकन के अंतिम समय तक वरुण की दावेदारी की चर्चाएं होती रहीं। समय समाप्त होते ही कयास और चर्चाएं भी समाप्त हो गईं।
Updated on:
27 Mar 2024 06:56 pm
Published on:
27 Mar 2024 06:55 pm
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