पत्रिका ने विशेष साक्षात्कार में बोले आचार्य जितरत्नसागर सूरीश्वर
हमारी संस्कृति ऑक्सीजन पर जी रही है उसे हमें बचाना जरूरी
हुब्बल्ली. शहर के कंचगार गली स्थित मरुधर शांति भवन में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य जितरत्नसागर सूरीश्वर से पत्रिका ने विशेष साक्षात्कार किया। उन्होंने समाज, संस्कृति, युवाओं को लेकर काफी कुछ कहा…।
सवाल : आज के युवाओं के भटकने का कारण क्या है?
जवाब : विदेशी संस्कृति हमारी संस्कृति पर हावी हो रही है। पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण बढ़ रहा है। विदेशी संस्कृतियां भोग प्रधान है, हमारी त्याग प्रधान है। इसलिए युवा पीढ़ी उस ओर जा रही है। शिक्षण भी वैसा ही दिया जा रहा है। देश आजाद हुए वर्षों बीत गए हैं परंतु आज भी हमारा शिक्षण मैकाले की शिक्षा नीतियों पर ही चल रहा है। इंग्लिश मीडियम ही चल रहा है। इसलिए हमारे लोग अपने धर्म से धीरे-धीरे विमुख हो रहे हैं।
सवाल : धर्म, कर्म से दूर क्यों हो रहे हैं युवा?
जवाब : धर्म, कर्म करने वाला वर्ग भी ईमानदारी से धर्म, कर्म नहीं कर रहा है। उनको देखकर आज की युवा पीढ़ी यही सोचती है कि इनसे अच्छे तो हम ही हैं। मन्दिर में उपासना धर्म करते हैं, परन्तु अधर्म के रास्ते पर ही चलते हैं। इसलिए युवा पीढ़ी सोचती है कि इनसे अच्छे तो हम धर्म नहीं करने वाले ही हैं। वो वास्तविकता को समझ नहीं पाते हैं। मंदिरों में, गुरु भगवन्तों के पास आते नहीं हैं। साथ ही शिक्षण का भार इतना बढ़ गया है कि युवा धीरे-धीरे धर्म से कटकर भौतिकता की ओर बढ़ रहे हैं।
सवाल : अंग्रेजी मीडियम शिक्षा पर क्या कहेंगे?
जवाब : इंग्लिश भाषा का हम विरोध नहीं करते, भाषा सीखनी चाहिए। हमारा विरोध इसके माध्यम से है। भाषा में तो विदेशी माध्यम चल रहा है। खान-पान, रहन-सहन आदि विदेशियों जैसा अनुकरण करना गलत है।
सवाल : एकल परिवार का बच्चों पर क्या असर पड़ रहा है?
जवाब : संयुक्त परिवार में दादा, दादी, काका, काकी, बुआ, मामा मिलते थे। प्रेम भरा वातावरण होता था। आज विदेशी संस्कृति के अनुसार पति-पत्नी, और मेरे बच्चे इतने में ही आज परिवार सिकुड़ गया है। इससे बच्चों में स्वार्थ वृद्धि हुई है। मैं और मेरे की भावना आ गई है। पहले पड़ोसियों को भी हम अपना मानते थे। आज रिश्तेदारों को भी अपना मानने को तैयार नहीं हैं।
सवाल : द्वेष और नफरत से कैसे निपटा जा सकता है?
जवाब : नफरत से निपटने के लिए प्रेम का वातावरण आवश्यक है। कुछ तत्व हमारा अमन, चैन छीनना चाहते हैं। इसे समझना चाहिए। हमारे देश में हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई सभी ने एकसाथ मिलकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। बाद में स्वार्थ के कारण लोग बंट गए। आज भी बंट रहे हैं, बांटने के प्रयास कर रहे हैं। पहले राजा, प्रजा को बच्चों की तरह देखता था। आज लोकशाही में वोट की राजनीति हो रही है। आज जो सही निर्णय करेगा तो उसे वोट नहीं मिलेंगे। इसलिए देश विवादों, लड़ाइयों, झगड़ों में उलझ गया है और बंट रहा है। यह हमारे लिए अच्छा नहीं है। हम सबको अमन चैन से रहना चाहिए।
सवाल: राजनीति और धर्म में संतुलन कैसे हो?
जवाब : धर्म में बहुत गड़बड़ चल रहा है। राजनीति से धर्म निकल गया है और धर्म वृत्ति में राजनीति आ गई है। इसलिए दोनों क्षेत्रों में उत्पात मचा है। धर्म समानता की बात थी इसलिए राजनीति ने धर्म को ही निकालकर फेंक दिया है। संसद और विधानसभा की कार्यवाही में ऐसे लड़ते हैं जैसे गलियों में लड़ते हों। धर्म में राजनीति अंग्रेजों की देन है। धर्म संस्थाओं में ट्रस्टी बन गए और वो लोग स्वार्थ के लिए राजनीति कर रहे हैं।
सवाल : मोबाइल का युवाओं और बच्चों पर कितना असर पड़ रहा है?
जवाब : मोबाइल का उपयोग सीमित है और दुरुपयोग अधिक है। मानव समाज की कमजोरी है कि वह बुराई को जल्दी ग्रहण करता है और अच्छाई को नहीं। मोबाइल में अच्छा कम, बुरा ज्यादा है और सब लोग बुरा देखने में लगे हुए हैं। इससे संस्कृति खत्म हो जाएगी। इस पर कोई सेंसरशिप नहीं है। यह अच्छे संकेत नहीं है।
सवाल : युवा हिंसक क्यों हो रहे हैं?
जवाब : लोगों की सहनशक्ति कम हो रही है। स्वछंदता से जीना पसंद है। माता पिता के साथ बच्चे हों या गुरु के साथ शिष्य कोई भी अनुशासन नहीं चाहता। किसी बात पर रोका जाता है तो ज्ञान, समर्पण नहीं होने से गलत कदम उठा लेेते हैं। माता-पिता बच्चों को संस्कार नहीं दे पाएंगे तो यह स्थिति जारी रहेगी। मां सौ शिक्षकों के बराबर होती है। आज की मांएं सवा साल के बच्चे को प्लेहोम में भर्ती कर कर्तव्य से भाग रही हैं।
सवाल : माता-पिता के लिए किस प्रकार के कार्यक्रम करेंगे?
जवाब : पहले आठ साल तक बच्चा अपनी मां की गोद में रहकर संस्कार सीखता था। आज सेवकों के भरोसे बच्चों को रहना पड़ता है। बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं, अपने नौकरी, व्यापार में व्यस्त हैं। पहले माता-पिता को सुधरना पड़ेगा। हम चातुर्मास में दो-दो घंटे की क्लास में संस्कारों की शिक्षा देंगे। आदर्श माता पिता, आदर्श बच्चे, आदर्श पति-पत्नी, व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन कैसे होने चाहिए इस पर प्रति बुधवार को विशेष प्रवचन होगा।
सवाल : आडंबर और दिखावे पर अंकुश कैसे लगाएंगे?
जवाब : आडंबर पर अंकुश लगना चाहिए। चुपचाप मदद करें। किसी की मदद करते हैं तो वो व्यक्ति जिंदगी भर याद रखेगा। दिखावा सही नहीं है। शादियों में 50 से 100 प्रकार के व्यंजनों के बजाय 11 व्यंजन हम लाने वाले हैं।
सवाल : समाज के लिए आप का क्या संदेश है?
जवाब : व्यसनमुक्त बनें, फैशनमुक्त बनें, अपनी संस्कृति पर चलने का प्रयास करें, भोग प्रधान संस्कृति छोड़कर त्याग प्रधान संस्कृति की रक्षा करें। आज हमारी संस्कृति ऑक्सीजन पर जी रही है उसे हमें बचाना जरूरी है। एक मात्र भारत ऐसा देश है जिसे भारत मां कहा जाता है। कुछ तत्व ऐसे हैं जो भारत माता का चीर हरण कर रहे हैं। हमें इन्हें समझाना है, उन्हें गलत रास्ते से रोककर सन्मार्ग पर लाना है। यही हमारा मुख्य उद्देश्य है।