जिन बरामदों पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए, वे दरक रहे हैं। स्मार्ट टॉयलेट डब्बा बन गए हैं। स्मार्ट रोड भी अनुउपयोगी है और ताल कटोरा पर खर्च किया पैसा पानी में बहाने जैसा ही दिखाई दे रहा है।दरअसल, स्मार्ट सिटी का काम मानकों के अनुरूप हुआ ही नहीं। कभी अधिकारियों ने कभी माननीयों ने अपने मन की की। तभी तो कई प्रोजेक्ट पर सरकार तो कुछ प्रोजेक्ट पर कोर्ट ने फटकार लगाई। 800 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी परकोटा जस का तस है।