लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी बेहद बुरे दौर से गुजर रही है। उत्तर प्रदेश में उसके अपने नेता ही एक के बाद एक पार्टी छोड़ते जा रहे हैं। इतना ही नहीं, वो पार्टी की गाइडलाइन से हटकर बयानबाजी भी कर रहे हैं। कांग्रेस को कमजोर करने की बची कसर भारतीय जनता पार्टी पूरी कर रही है। भाजपा की नजर कांग्रेस के उन असंतुष्ट नेताओं पर है, जिनका मानना है कि अब जनता का भरोसा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से हट गया है। इनमें से तमाम ऐसे नेता हैं, जो साल 2019 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे। सूत्रों की मानें तो बीजेपी प्रदेश नेतृत्व से अंतिम दौर की इनकी बात चल रही है। ये नेता कभी भी बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सामने अपना कुनबा बचाए रखना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भाजपा मिशन 2022 की तैयारियों में जुटी हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी अब तक अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष तक ढूंढ नहीं पाई है। सोनभद्र नरसंहार कांड और उन्नाव केस में प्रियंका गांधी भले ही सक्रिय दिखीं, लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर पूरे सीन से ही गायब दिखे। लोकसभा चुनाव में हार के बाद से अब तक वह सिर्फ तीन दिन ही प्रदेश के दौरे पर रहे हैं। इन हालातों के बीच कांग्रेस नेताओं में असंतुष्टि बढ़ती जा रही है। भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दल अपने लिए इसे एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं। इनमें से कई ऐसे नेताओं पर भाजपा की नजर है, जिन्हें कोई पद मिलते ही वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ले सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस बेहद बुरे दौर में गुजर रही है। बीते आम चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव हार गये थे। इनमें राहुल गांधी का भी नाम शामिल है। 2019 में कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट ही जीत सकी थी, जिस पर सोनिया गांधी ने विजय का परचम लहराया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सिर्फ सात विधायकों ही चुनाव जीत सके थे। इनमें से राकेश सिंह की सदस्यता खारिज करने की अर्जी खुद ही कांग्रेस दे चुकी है। ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं को पार्टी में रोकने के लिए क्या कदम उठाती है..