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भगवान खुद अपनी मूर्ति बनवा लेंगे, CJI के तंज पर क्यों मच गया बवाल ?

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने याचिका खारिज कर करते हुए अलग ही टिप्पणी करदी। उन्होंने कहा कि अगर याचिकाकर्ता की भगवान विष्णु में इतनी आस्था है, तो वे भगवान से प्रार्थना करें—वे खुद अपनी मूर्ति की व्यवस्था कर लेंगे।

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16 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की एक प्राचीन, सात फुट ऊंची मूर्ति के पुनर्निर्माण की मांग की गई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मध्यकालीन मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया था, और हिंदू आस्था के सम्मान में इसे बहाल किया जाना चाहिए। लेकिन मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने याचिका खारिज कर करते हुए अलग ही टिप्पणी करदी। उन्होंने कहा कि अगर याचिकाकर्ता की भगवान विष्णु में इतनी आस्था है, तो वे भगवान से प्रार्थना करें—वे खुद अपनी मूर्ति की व्यवस्था कर लेंगे। साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह मामला पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया यानी एएसआई के दायरे में आता है, इसलिए याचिकाकर्ता वहां संपर्क कर सकते हैं।

लेकिन इस टिप्पणी ने देशभर में विवाद खड़ा कर दिया। हिंदू संगठनों और सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसे असंवेदनशील बताया, लोगों ने सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या मुस्लिम या अन्य धर्मों के मामले में भी ऐसी टिप्पणी की जाती? विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट बिना ऐसी टिप्पणी के एएसआई को निर्देश दे सकता था, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत न होतीं। हिंदू पक्ष ने यह भी दलील दी कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता में बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक भावओं और आस्था को अक्सर हल्के में लिया जाता है, जबकि अल्पसंख्यक मामलों में अधिक संवेदनशीलता दिखाई जाती है।

हालांकि विवाद बढ़ने के बाद मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी का उद्देश्य किसी की भी आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं था, और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। लेकिन विवाद थमा नहीं। सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई, जहां कुछ लोगों ने इसे न्यायपालिका में हिंदू-विरोधी रवैये का उदाहरण बताया। दूसरी ओर, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि मूर्ति बहाली जैसे मामले एएसआई के अधिकार क्षेत्र में हैं, और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप सीमित होना उचित था।

ऐसे में अब यह मामला न्यायपालिका की संवेदनशीलता और धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या पर सवाल उठाता है। कोर्ट का याचिका खारिज करना कानूनी रूप से ठीक था, लेकिन टिप्पणी का तरीका विवादास्पद बन गया। बेहतर होता कि कोर्ट ने धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते हुए सिर्फ एएसआई को निर्देश दिया होता। इस घटना से एक बात तो तय है कि धार्मिक मामलों में संतुलन और संवेदनशीलता कितनी जरूरी होती है, ताकि सभी धर्मों की आस्था और सम्मान बना रहे।