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वीडियो स्टोरीः हार्टअटैक के बाद 20 फीसदी काम कर रहा था दिल, सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने बचाई जान

जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (Pt J.N.M. Medical College Raipur ) के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (Advanced Cardiac Institute) (एसीआई) में हार्टअटैक (Heart Attack) के बाद हार्ट की दीवार फटने के बाद मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुके 75 वर्षीय व्यक्ति की जान बचा ली गई। मरीज 58 दिन आईसीयू व 15 दिन वार्ड में भर्ती रहा। जब मरीज को अटैक आया तब उसका हार्ट केवल 20 फीसदी काम कर रहा था।

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जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (Pt J.N.M. Medical College Raipur ) के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (Advanced Cardiac Institute) (एसीआई) में हार्टअटैक (Heart Attack) के बाद हार्ट की दीवार फटने के बाद मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुके 75 वर्षीय व्यक्ति की जान बचा ली गई। मरीज 58 दिन आईसीयू व 15 दिन वार्ड में भर्ती रहा। जब मरीज को अटैक आया तब उसका हार्ट केवल 20 फीसदी काम कर रहा था। गंभीर स्थिति में पहुंचे मरीज का कार्डियो थोरेसिक एंड वेस्कुलर सर्जरी (Cardiothoracic and vascular Surgery) विभाग में ऑपरेशन किया गया। विभाग के एचओडी डॉ. कृष्णकांत साहू व उनकी टीम ने सफल सर्जरी कर मरीज की जान बचाई। हार्ट अटैक के कारण दिल में हुए छेद को मेडिकल भाषा में वेंट्रीकुलर सेप्टल रफ्चर कहा जाता है।

अस्पताल पहुंचा तो ऐसा था मरीज का हाल

डाॅ. साहू ने बताया कि मरीज जब अस्पताल पहुंचा तो उनकी सीने में दर्द था। जरूरी जांच से हार्टअटैक का (Heart Attack) पता चला। ऐसे में मरीज को एंजियोग्राफी (Angiography) के लिए तत्काल कार्डियोलाॅजी विभाग (Cardiology) भेजा गया। एंजियोग्राफी करने से पता चला कि उनके हार्ट की मुख्य कोरोनरी आर्टरी (धमनी) में ब्लॉक है। एंजियोप्लास्टी के दौरान स्टेंट लगाने से मरीज दो दिन ठीक रहा। तीसरे ही दिन उसकी सांस फूलने लगी, पेशाब बनना बंद हो गई, बी.पी. (Blood Pressure) बहुत ही कम (70/40) हो गया। शरीर में पानी भरना शुरू हो गया। इको कार्डियोग्राफी करने पर पता चला कि उनकी दो वेंट्रीकल, लेफ्ट और राइट वेंट्रीकल के बीच की दीवाल में हार्टअटैक के कारण बड़ा सा छेद हो गया था|। इसी छेद को ही वेंट्रीकुलर सेप्टल रफ्चर कहते है। यह छेद इसलिए होता है क्योंकि हार्ट अटैक में हृदय की धमनी में थक्का बनने के कारण ब्लड सर्कुलेशन में रूकावट आ जाती है। इससे हार्ट की मांसपेशियों में ब्लड नहीं पहुंच पाने के कारण गलना शुरू हो जाता है। गली हुई हार्ट की मांसपेशियां ब्लड प्रेशर को झेल नहीं पातीं और उस स्थान पर छेद हो जाता है। यदि यही छेद हृदय के बाहरी दीवाल में होता है, तो मरीज की मृत्यु कुछ ही मिनटों में हो जाती है।

हार्ट का छेद बड़ा था इसलिए नहीं लग सकते थे डिवाइस

हार्ट का छेद इतना बड़ा थी कि इसमें डिवाइस लगाना संभव नहीं था। इसलिए एंजियोप्लास्टी व दोबारा इको करने के बाद कार्डियोलॉजी विभाग ने मरीज को डाॅ. साहू के पास रेफर कर दिया गया। मरीज एक्युट कार्डियक फेल्योर विद पल्मोनरी एडीमा की स्थिति में था। जहां पेशाब बननी बंद हो जाती है, बीपी गिर जाता है। बताया जाता है कि मरीज के शरीर में लगभग 12 से 13 लीटर पानी जमा हो गया था। वजन 72 किलो से 57 किलो में आ गया। रक्त में क्रिएटिनिन लेवल 7.2 मिलीग्राम से 0.8 मिग्रा आने में लगभग 58 दिन से भी ज्यादा लग गए।

सर्जरी टीम में ये भी शामिल

हार्ट सर्जन डाॅ. निशांत चंदेल, एनेस्थेटिस्ट- डाॅ. तुषार मालेवार, रेसीडेंट डाॅ. अजीत सकलेजा, जेआर डाॅ. संजय त्रिपाठी, परफ्यूजिनिस्ट प्रीतम, डिगेश्वर, टेक्नीशियन भूपेन्द्र, हरीश, नर्सिंग स्टाॅफ – राजेन्द्र, नरेन्द्र, दुष्यंत, चोवा, मुनेश, सरिता, किरण, प्रियंका, कुसुम, शीबा, तेजेन्द्र।