आदेश सार्वजनिक होने के बाद विधि के छात्रों ने किया धरना खत्म, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी विद्यार्थियों के साथ धरने पर बैठे
सागर. डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में 19 वर्षों से बगैर मान्यता के संचालित हो रहे तीन वर्षीय एवं पांच वर्षीय एकीकृत (ऑनर्स) विधि पाठ्यक्रमों को बार काउंसिल ऑफ इंडिया से वर्तमान और अगले सत्र में विस्तार का अनुमोदन मिल गया है। बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया से आदेश आने के बाद इसे सार्वजनिक किया गया। निर्धारित शुल्क जमा होने के बाद यह आदेश मिला। स्वीकृति पत्र मिलने के बाद तीन दिनों से धरना पर बैठे एलएलबी और एलएलएम के विद्यार्थियों ने धरना को खत्म किया। छात्र-छात्राएं परेशान होकर सोमवार से धरना प्रदर्शन कर रहे थे। धरना प्रदर्शन के दौरान यहां बुधवार को मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार पहुंचे। उन्होंने अध्ययनरत विधि विभाग के छात्र-छात्राओं के बीच जमीन पर बैठकर उनके मुद्दे को सुना। वहां उपस्थित रजिस्ट्रार सत्य प्रकाश उपाध्याय से इस विषय में उत्तर मांगा गया। एनएसयूआई जिला अध्यक्ष अक्षत कोठारी ने कहा कि एनएसयूआई का पूरा संगठन पीडि़त छात्रों के साथ है। इस मौके पर छात्र शाहरुख खान, जतिन सिंह, प्रद्युम्न गुप्ता, मुदित वैद्य,दीपू कोरी, हिम सिंह सहित बडी़ संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
प्रत्येक पाठ्यक्रम में 60 सीटों पर मिलेगा प्रवेश
बार काउंसिल से प्राप्त स्वीकृति पत्र के अनुसार प्रत्येक पाठ्यक्रम में 60 सीट पर प्रवेश के लिए सत्र 2024-2025 एवं सत्र 2025-26 के लिए विस्तार का अनुमोदन प्रदान किया गया है। विवि के कुलसचिव डॉ. एसपी उपाध्याय ने बताया कि विश्वविद्यालय में पांच वर्षीय बीए एलएलबी (ऑनर्स) एवं तीन वर्षीय एलएलबी पाठ्यक्रम संचालित है, जिसकी प्रत्येक नए सत्र में प्रवेश के विस्तार के लिए अनुमोदन का प्रावधान है। इसके लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करना होता है। विश्वविद्यालय के स्वीकृति के लिए प्रस्ताव पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया की विधि शिक्षा समिति ने यह अनुमोदन दिया है।
न्यायालय में याचिका दर्ज होने के 3 महीनों के भीतर ही मिली मान्यता
मान्यता के लिए जब 19 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद अक्टूबर 2024 में छात्रों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने मामले की गंभीरता को भांपते हुए पहली ही सुनवाई में विश्वविद्यालय और बार काउंसिल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था। 18 वर्षों तक अनदेखी की जाने वाली इस मान्यता को केवल तीन महीनों में ही प्रदान करना पड़ा। अधिवक्ता प्रताप राज तिवारी का कहना है कि मान्यता का आदेश 7 फरवरी को ही आ गया था, लेकिन विश्वविद्यालय ने इसे छात्रों से छिपाएं रखा, जिससे वे हड़ताल पर बैठे रहे। केवल न्यायालय में मामला सूचीबद्ध होने से एक दिन पहले ही आदेश जारी किया गया ताकि न्यायिक कार्यवाही से बचा जा सके।
फीस जमा करने के बाद विवि में पत्र बुधवार को ही आया है। फीस जमा करने की प्रक्रिया पहले से चल रही थी। अनुमोदन प्राप्त होने के बाद बुधवार को सार्वजनिक किया गया।
विवेक जयसवाल, मीडिया प्रभारी