patrika.com पर प्रस्तुत है खास सीरिज ‘मेरे राम’। इस सीरिज में प्राचीन नगरी विदिशा के बारे में बता रहे हैं। यहां पर भगवान राम दो बार आए थे। पहली बार आए थे तब उन्होंने एक कुंड में स्नान किया था, यहां रावण वध का दोष मिटाया था। इसके बाद छोटे भाई शत्रुघ्न के बेटे के राज्याभिषेक में भी विदिशा आए थे…।
विदिशा का पहले भेलसा नाम था
भोपाल से महज 56 किमी दूर बसे विदिशा का पुराना नाम भेलसा था। यह नाम सूर्य के नाम भेल्लिस्वामिन के नाम पर था। संस्कृति साहित्य में विदिशा का प्राचीन नाम वेदिश या वेदिसा है। अंग्रेजी काल में भी यह शहर भेलसा के नाम से प्रचलित था, लेकिन 1952 में राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने शहर की जनता की मांग पर इस शहर का नाम विदिशा रख दिया।
विदिशा में है चरणतीर्थ
जब भगवान श्रीरामचंद्र, सीता और लक्ष्मण अयोध्या से राजपाट छोड़कर वनवास पर निकले थे, तो उत्तर प्रदेश से लेकर लंका तक कई स्थानों पर पहुंचे थे। मध्यप्रदेश में भी ऐसे कई स्थान है, जहां-जहां भगवान के चरण पड़े वो स्थान तीर्थ बन गए। शोधकर्ता भी दावा करते हैं कि वनवास के दौरान भगवान विदिशा में भी कुछ समय के लिए रुके थे। यही स्थान आज चरणतीर्थ कहलाता है।
बेतवा नदी के तय पर है यह स्थान
श्रीराम चरण तीर्थ धाम मंदिर के पुजारी पंडित संजय पुरोहित बताते हैं कि त्रेतायुग में वन वास के दौरान समय भगवान यहां आए थे। रावण वध के दौरान ब्रह्म हत्या का दोष लगा था तो भगवान ने यहां के कुंड में स्नान किया था। तभी से यहां स्नान करने से ब्रह्म हत्या दोष का भी निवारण होता है। यह मंदिर बेतवा नदी के किनारे है।
शत्रुघ्न के बेटे के राज्याभिषेक में आए थे श्रीराम
भगवान श्रीराम दो बार विदिशा आए थे। पहली बार वनवास के दौरान और दूसरी बार अयोध्या लौटते वक्त। भगवान के छोटे भाई शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती की राजधानी भी विदिशा रही है। भगवान राम के बारे में यह किंवदंती है कि शत्रुघाती के राज्याभिषेक में भी भगवान श्रीराम विदिशा आए थे।
च्यवन ऋषि ने भी की तपस्या
यह भी तथ्य मिलते हैं कि इसी स्थान पर च्यवन ऋषि का आश्रम भी था और यहीं पर ऋषि तपस्या करते थे। भगवान राम के बनवास काल के वक्त राम जंगलों में घूम रहे थे, तभी साधु-महात्माओं से भी मिलते थे और उनका आशीर्वाद भी लेते थे। विदिशा भी राम च्यवन ऋषि के आश्रम आए थे और उनका आशीर्वाद लिया था।
इतिहास में है जिक्र
इतिहासकार निरंजन वर्मा कहते हैं कि त्रेता युग में भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया था, तो विदिशा को शत्रुघ्न ने यादवों से युद्ध के बाद जीत लिया था। इसके बाद जब रामराज्य विभाजन का वक्त आया तो इस प्रदेश को महाराजा शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती को दे दिया गया। (इस तथ्य का जिक्र वाल्मिकी रामायण में भी मिलता है)। उस दौर के आसपास का प्रदेश दशार्ण तथा इसकी राजधानी विदिशा कहलाती थी, महर्षि वाल्मिकी से भी यह क्षेत्र जुड़ा हुआ माना जाता है।
250 साल पुराना है चरणतीर्थ मंदिर
विदिशा से अशोकनगर मार्ग से होकर पवित्र बेतवा नदी गुजरी है। यहीं महाराष्ट्रीयन शैली के दो मंदिर हैं। इसी जगह को चरणतीर्थ माना जाता है। चरणतीर्थ पर शिवजी के दो विशाल मंदिर भी हैं। इनमें से एक मंदिर मराठों के सेनापति और भेलसा के सूबा खांडेराव अप्पाजी ने 1775 में बनवाया था। दूसरा मंदिर उनकी बहन ने बनवाया था। दोनों मंदिरों शिवलिंग स्थापित किए गए थे।
सूबेदार ने कराया मंदिर का निर्माण
मुगल जब भारत के मंदिरों पर अतिक्रमण कर रहे थे और नष्ट कर रहे थे, उसी दौर में परेशान विदिशा नगर के लोगों के लिए ग्वालियर स्टेट के सूबेदार अप्पा खंडेराव द्वारा यहां मंदिर का निर्माण कराया गया था. उन्हें स्वप्न में भगवान ने कहा कि इस स्थान के पास देवालय का निर्माण करवाओ, तब उन्होंने यहां चरण तीर्थ पर शिव मंदिर का निर्माण कराया था। वहीं मंदिर आज भी स्थापित है।
भोपाल से विदिशा
(bhopal to vidisha distance)
प्राचीन शहर विदिशा भोपाल से 57 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने में करीब डेढ़ घंटे का समय लगता है। देश के कई हिस्सों से भोपाल तक पहुंचने के लिए सीधी फ्लाइट है। आप राजाभोज एयरपोर्ट पर लैंड करने के बाद सड़क मार्ग से विदिशा पहुंच सकते हैं। इसके अलावा दिल्ली मुंबई रेलवे ट्रैक पर स्थित विदिशा में रेलवे स्टेशन भी हैं। वहीं यहां पहुंचने के लिए कई शहरों से बसें भी चलती हैं।