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मोटिवेशन : टूटी कलाई भी नहीं तोड़ पाई इनका हौंसला

नीरज चोपड़ा मूल रूप से हरियाणा के पानीपत स्थित खंदारा गांव के रहने वाले हैं। इनका जन्म २४ दिसंबर १९९७ को हुआ था

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Amanpreet Kaur

Mar 04, 2018

Neeraj Chopra

Neeraj Chopra

नीरज चोपड़ा मूल रूप से हरियाणा के पानीपत स्थित खंदारा गांव के रहने वाले हैं। इनका जन्म २४ दिसंबर १९९७ को हुआ था। पिता सतीश कुमार किसान हैं। खेतीबाड़ी से घर परिवार का खर्च चलता था। स्कूली शिक्षा इन्होंने चंडीगढ़ से पूरी की है। इन्हें पढ़ाई के साथ पिता और चाचा के साथ खेत पर जाकर उनके साथ काम करना पंसद था। बचपन से ही गोलमटोल थे। इसलिए पिता और चाचा इन्हें खेतों में ले जाते थे कि कुछ काम करेंगे तो शरीर ठीक होगा। ग्यारह साल की उम्र में ही इनका वजन करीब ८० किलो था। वजन से परेशान रहने लगे तो इन्होंने पानीपत स्टेडिमय में दौड़ लगाने की योजना बनाई। स्टेडियम घर से १७ किलोमीटर दूर था और बस से जाने के लिए तीस रुपए किराया लगता था। कई बार किराया बचाने के लिए ये लिफ्ट लेकर स्टेडियम पहुंच रनिंग-प्रेक्टिस करते थे। जब ये दौड़ते थे तो स्टेडियम में इन्हें देखने वालों की भीड़ लग जाती थी। उस वक्त लोग इन्हें तूफान कहकर बुलाने लगे थे।

बास्केटबॉल मैच में टूट गई थी कलाई

पंचकुला में बास्केटबॉल खेलने के दौरान इनकी कलाई की हड्डी टूट गई थी जिसके बाद डॉक्टरों ने छह महीने आराम की सलाह दी थी। कलाई टूटने के बाद इन्होंने मान लिया था कि कॅरियर खत्म हो गया है और ये अब कभी जेवलिन नहीं फेंक पाएंगे। आराम के लिए घर आए तो दो महीने तक वर्कआउट बंद होने से इनका वजन ८२ से ९३ किलो हो गया। कलाई ठीक हुई तो चार महीने तक लगातार एक्सरसाइज की तब जाकर वजन ८३ किलो हो सका। इसके बाद वेट मेंटेन करने के लिए एक्सरसाइज करते रहे।

फिटनेस का रखते पूरा खयाल

रोजाना सुबह छह बजे से दस बजे तक एक्सरसाइज के साथ प्रेक्टिस करते हैं। मसल्स की रिकवरी के लिए थोड़ा आराम करते हैं। इसके बाद लंच लेते हैं। शाम चार से आठ बजे तक प्रेक्टिस करते हैं। जिम के साथ मेडिन बॉल और साइड होल्डिंग एक्सरसाइज करते हैं जिससे शरीर मजबूत रहे। खाने में रोटी, हरी सब्जी और खीर लेते हैं। चैंपियनशिप की तैयारी के दौरान प्रोटीन युक्त डाइट अधिक मात्रा में लेते हैं।

स्टेडियम में पहली बार देखा था जेवलिन

पानीपत स्टेडियम में इन्होंने वरिष्ठ जेवलिन (भाला फेंक) खिलाड़ी जयवीर को प्रेक्टिस करते देखा था। धीरे-धीरे इन्हें भी जेवलिन में रुचि हो गई और रोजाना प्रेक्टिस मैच देखने लगे। कुछ दिन बाद ये जयवीर द्वारा फेंके गए जेवलिन को उठाकर लाने का काम करने लगे। इन्हें जब भी मौका मिलता था भाला फेंकने की प्रेक्टिस करने लगे। इनके जेवलिन फेंकने की तकनीक को जयवीर ने देखा और तारीफ करते हुए इस खेल में आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। इसके बाद से ही इन्होंने जेवलिन खिलाड़ी बनने के लिए मेहनत शुरू की थी।

चर्चा में

हाल ही जर्मनी के ऑफेनबर्ग में आयोजित इंटरनेशनल जेवलिन मीट (भाला फेंक प्रतियोगिता) में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया है। मेडल जीतने के बाद कहा है कि मैच में पॉवर और स्पीड में कमी की वजह से गोल्ड से चूक गए। हालांकि प्रेक्टिस जारी है और आने वाले अन्य मैच में ये बेहतर परफॉर्म करेंगे।

२०१२ में लखनऊ में जूनियर नेशनल लेवल पर आयोजित प्रतियोगिता में पहली बार ६८.४६ मीटर भाला फेंककर रिकॉर्ड बनाया था।
२०१५ यूक्रेन में आयोजित वल्र्ड यूथ चैंपियनशिप में भाग लिया। २०१५ में नेशनल गेम्स ऑफ केरल का हिस्सा रहे।
२०१६ पोलैंड में हुए वल्र्ड अंडर २० एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया था।
२०१७ एशियन चैंपियन-शिप में ८६.४८ मीटर (करीब २८३ फीट) दूर भाला फेंका था।