
China deploys troops in Larung Gar intensify religious repression in Tibet
China on Tibet: तिब्बत में चीन का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। चीन ने तिब्बत में स्थित दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध अध्ययन केंद्र लारुंग गार (Larung Gar) बौद्ध अकादमी में बड़ी संख्या में सेना तैनात कर दी है। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) ने बीती 20 दिसंबर को बताया था कि तिब्बती खाम क्षेत्र में स्थित करज़े (चीनी नाम-गंजी) के सेरथर काउंटी में अकादमी में लगभग 400 चीनी सैनिको को तैनात कर दिया है जो अब सिचुआन प्रांत का हिस्सा है।
CTA के मुताबिक इलाके में सैनिकों की तैनाती के साथ हेलीकॉप्टर से निगरानी भी की थी। जो ये बताता है कि अब इस महत्वपूर्ण इलाके में भी चीनी ताकत हावी हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक चीनी अधिकारी 2025 में लारुंग गार में नए नियम लागू करने की योजना बना रहे हैं। जिसमें रहने के लिए समय अवधि ज्यादा से ज्यादा 15 साल और सभी बौद्ध भिक्षुओं का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाएगा।
चीनी सरकार का लक्ष्य बौद्ध धार्मिक अकादमी में धार्मिक चिकित्सकों की संख्या को कमी करना भी है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जो चीन के स्टूडेंट यहां पर रहकर पढ़ाई करते हैं उन्हें संस्थान छोड़ने के लिए कहा जा रहा है।
बता दें कि लारुंग गार की स्थापना 1980 में हुई थी। ये तिब्बती बौद्ध शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहां पर हजारों की संख्या में भिक्षुओं का अध्ययन होता है। लगातार इस अकादमी को चीनी अधिकारियों अपना टारगेट बनाते रहते हैं। पहले 2001 में और फिर 2016-2017 के बीच बड़ी कार्रवाईयां हुईं। इस दौरान हजारों आवासीय संरचनाओं को चीनी प्रशासन ने नष्ट कर दिया है। यहां पर अध्ययन करने वाले भिक्षुओं को जबरन बेदखल कर दिया गया। चीन की इन कार्रवाइयों ने ही लारुंग गार की आबादी को आधा कर दिया। वर्तमान में यहां पर रहने वाली आबादी 10,000 थी जो 5 हजार से भी कम रह गई।
CTA का कहना है कि तिब्बत के इस इलाके में सैनिकों की तैनाती ये दिखाती है कि तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने के चीन क्या कुछ कर रहा है। CTA की रिपोर्ट के मुताबिक 1959 में एक बड़े विद्रोह के चलते ही दलाई लामा भारत भागना पड़ा। यहां उन्होंने निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की है।
गौर करने वाली बात है कि तिब्बत को चीन अपना इलाका बताता है। कई तिब्बती नेता अपने क्षेत्र की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और चीन की इस ज्यादती का विरोध कर रहे हैं।
बता दें कि साल 1954 में भारत ने तिब्बत पर चीनी संप्रभुता को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद जून 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की। यहां पर उन्होंने एक संयुक्त घोषणा पर साइन किए। जिसमें भारत ने माना कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के क्षेत्र का हिस्सा है और चीन चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा माना।
भारत ने चीन के सभी आरोपों को खारिज करते हुए दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा को राजनीतिक रंग देने से बचने की सलाह दी। भारत ने हमेशा बीजिंग की 'वन चाइना' नीति का सम्मान किया है। भारत ने कहा है कि चीन को भारत के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।
Updated on:
03 Jan 2025 03:58 pm
Published on:
28 Dec 2024 03:29 pm
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