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Henry kissinger: अमरीकी चाणक्य हेनरी किसिंगर भारत पर दबाव बनाने में रहे असफल, जानिए 34 साल बाद भारतीयों से क्यों मांगी माफी?

Henry kissinger dead at 100: अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का 100 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें अमरीका का चाणक्य बुलाते थे लेकिन इसके बावजूद 1971 के युद्ध में वह बांग्लादेश का पाकिस्तान से विभाजन के समय भारत पर दबाव नहीं बना पाए थे। उन्हें शीत युद्ध की रणनीति, चीन से दोस्ती और वियतनाम शांति समझौते का सूत्रधार बताया जाता है।

Dec 01, 2023 / 10:05 am

स्वतंत्र मिश्र

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Henry Kissinger called Chankaya of America: अमरीका के सबसे चर्चित, विवादित और प्रभावशाली विदेश मंत्रियों में से एक डॉक्टर हेनरी किसिंजर (100) का बुधवार को कनेक्टिकट में निधन हो गया। अमरीका के इस ‘चाणक्य’ ने राष्ट्रपति रिचर्ड एम. निक्सन और जेराल्ड फोर्ड के कार्यकाल के दौरान अमरीकी विदेश नीति पर अपूर्व काम किया। शीत युद्ध की रणनीति बनाने के साथ उन्हें चीन-अमरीका के बीच कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत, ऐतिहासिक अमरीकी-सोवियत हथियार नियंत्रण वार्ता, इजरायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच संबंधों के विस्तार के अलावा उत्तरी वियतनाम के साथ पेरिस शांति समझौते के लिए भी जाना जाता था।

जर्मनी में जन्मे यहूदी शरणार्थी हेनरी किसिंजर उन अमरीकी नेताओं में से एक रहे, भारत की बढ़ती ताकत जिनके लिए आंख की किरकिरी थी। भारत-पाकिस्तान के 1971 के युद्ध के दौरान किसिंजर ने पाकिस्तान की मदद करते हुए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। उस समय वह विदेश मंत्री के साथ अमरीका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी थे। बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत के सैन्य दखल से वह इस कदर बौखला गए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और भारतीयों के लिए सार्वजनिक तौर पर अपशब्द बोल गए थे। किसिंजर ने तब चीन की यात्रा भी की थी। वह चाहते थे कि चीन भारतीय सीमा पर फौज भेजकर दबाव बनाए। चीन के इनकार के बाद किसिंजर के आदेश पर अमरीकी नौसेना पाकिस्तान की मदद के लिए पहुंची, लेकिन सोवियत संघ की सेना को भारत के पक्ष में देखकर उसे लौटना पड़ा। किसिंजर ने 1971 के युद्ध के 34 साल बाद 2005 में इंदिरा गांधी और भारतीयों के लिए अपशब्द बोलने पर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी थी।

1973 में शांति का विवादित नोबेल प्राइज

करीब 19 साल चले वियतनाम युद्ध को रोकने में हेनरी किसिंजर ने अहम भूमिका निभाई। उन्हें और वियतनाम के नेता ले डक थो को 1973 में संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई। थो ने वियतनाम में अमरीकी फौज की दमनकारी नीतियों और अत्याचारों को लेकर यह पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। किसिंजर राजनीति में आने से पहले हावर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे।

जर्मनी से भागकर अमरीका आए और छा गए

हेनरी किसिंजर अकेले अमरीकी नेता थे, जो विदेश मंत्री के साथ वाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी रहे। कहा जाता है कि अमरीकी विदेश नीति पर उनका नियंत्रण राष्ट्रपति से ज्यादा था। वह 1938 में जर्मनी से भागकर यहूदी अप्रवासी के रूप में अमरीका पहुंचे थे। तब बहुत कम अंग्रेजी बोल पाते थे। उन्होंने हार्वर्ड से स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान इतिहास के साथ अंग्रेजी में महारत हासिल की।

कई किताबें लिखीं

किसिंजर ने इस साल 27 मई को 100वां जन्मदिन मनाया था। इस उम्र में भी वह सक्रिय थे और वाइट हाउस की बैठकों में भाग लेते थे। उन्होंने कई किताबें लिखीं। नेतृत्व शैली पर उनकी एक किताब कुछ समय पहले आई थी।

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