
पाक सेना ने पीओके में आजादी मांगते लोगों पर चलाईं गोलियां (Photo - ANI)
PoK Violence: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में हिंसक प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। आज 2 अक्टूबर 2025 को चौथा दिन है, जब सड़कें खून से लाल (PoK Violence) हो रही हैं। स्थानीय कश्मीरियों का गुस्सा (Kashmir Protests) अब हद पार कर चुका है। आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 12 निर्दोष नागरिकों की जान जा चुकी है, जबकि 200 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। ये आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं, बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है, जो पूरे क्षेत्र को हिला रही हैं। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें तेज हो गई हैं, और स्थिति काबू से बाहर होती जा रही है। पुलिसकर्मी भी हिंसा की चपेट में फंस गए हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि तीन पुलिस वालों की मौत हो चुकी है, और करीब 170 जवान (Pakistan Army) जख्मी हैं। जो जवान अपनी ड्यूटी निभा रहे थे, वे भी इस उग्र भीड़ के शिकार बन गए। पीओके के विभिन्न इलाकों में पथराव, आगजनी और गोलीबारी की घटनाएं आम हो गई हैं। स्थानीय मीडिया के अनुसार, मुजफ्फराबाद और डैडयाल जैसे शहरों में हालात सबसे ज्यादा बिगड़े हुए हैं। सरकार ने कर्फ्यू लगाने की कोशिश की, लेकिन गुस्सैल युवाओं ने (Civilian Casualties) इसे ठुकरा दिया।
इस पूरे बवाल की जड़ में है लोगों का गहरा असंतोष। पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है। कश्मीरियों को लगता है कि उनके अधिकारों का हनन हो रहा है। महंगाई आसमान छू रही है, बिजली-पानी की किल्लत ने जिंदगी मुश्किल कर दी है। ऊपर से सेना का दमनकारी रवैया – ये सब मिल कर एक ज्वालामुखी का रूप ले चुका है। जम्मू कश्मीर अवामी एक्शन कमेटी (जेएएसी) जैसे संगठन लंबे मार्च निकाल रहे हैं, जिसमें हजारों लोग शामिल हो रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि कश्मीरी शरणार्थियों को विधानसभा सीटें मिलें और सैन्य अत्याचार बंद हों। ये प्रदर्शन सिर्फ एक दिन की बात नहीं, बल्कि सालों की कुंठा का विस्फोट हैं।
पाकिस्तान की तरफ से अजीबोगरीब बयानबाजी भी शुरू हो गई है। वे इस हिंसा का ठीकरा भारत के सिर फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हकीकत यही है कि पीओके के लोग अपनी ही सरकार से त्रस्त हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी ये खबरें छाई हुई हैं, जहां पाकिस्तानी सेना की बर्बरता पर सवाल उठ रहे हैं। क्वेट्टा में ब्लास्ट जैसी घटनाओं के बीच पीओके का बवाल पाकिस्तान की आंतरिक कमजोरी उजागर कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्दी कदम नहीं उठे, तो ये आंदोलन पूरे पाकिस्तान को हिला सकता है।
बहरहाल पीओके की यह हिंसा सिर्फ स्थानीय मसला नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा है। भारत सरकार ने इस पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन डिप्लोमैटिक स्तर पर निगरानी बढ़ा दी है। कश्मीरियों की ये लड़ाई उनके हक के लिए है, लेकिन हिंसा से कोई फायदा नहीं। सरकार को बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। वरना, मौतों का सिलसिला बढ़ता जाएगा। ये घटना हमें याद दिलाती है कि दबाव में रखे गए लोग कब विद्रोह कर उठते हैं। कुल मिलाकर, पीओके का संकट एक सबक है – अधिकारों की रक्षा ही शांति की कुंजी है।
Updated on:
02 Oct 2025 01:35 pm
Published on:
02 Oct 2025 01:34 pm
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