
इमरान खान ने आसिम मुनीर पर कसा तंज (फोटो - पत्रिका)
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को हाल ही में फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है, जो पाकिस्तानी सेना का सर्वोच्च मानद पद है। यह निर्णय प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता वाली संघीय कैबिनेट की बैठक में लिया गया। यह पदोन्नति ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के साथ सैन्य टकराव में पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाने के बाद हुई है, जिसे लेकर देश में विवाद छिड़ गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे "जंगल के कानून" का प्रतीक बताया है।
ऑपरेशन सिंदूर, जो पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत द्वारा शुरू किया गया था, में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों और 11 वायुसेना अड्डों पर सटीक हमले किए। इस दौरान पाकिस्तान ने 70 से अधिक सैनिक और 600 से ज्यादा ड्रोन खोए। भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस हार के बावजूद आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल का पद देकर शहबाज शरीफ सरकार सेना का मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, कई लोग इसे सियासी खेल मानते हैं, जिसका उद्देश्य मुनीर और शरीफ के बीच कथित गुप्त समझौते को मजबूत करना है।
जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस प्रमोशन पर तंज कसते हुए कहा, "माशाअल्लाह, जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया गया है। लेकिन स्पष्ट रूप से कहें तो उन्हें 'राजा' की उपाधि देना ज्यादा उपयुक्त होता, क्योंकि देश में अभी जंगल का कानून चल रहा है।" खान ने सोशल मीडिया पर अपने संदेश में यह भी कहा कि पाकिस्तान बाहरी खतरों, आतंकवाद और आर्थिक संकट से जूझ रहा है, और इस समय एकता की जरूरत है। उन्होंने सेना से संवैधानिक सीमाओं में रहने की अपील की और किसी भी तरह की "डील" की अफवाहों को खारिज किया।
आसिम मुनीर और इमरान खान के बीच तल्खी पुरानी है। मुनीर ने 2022 में सेना प्रमुख बनने के बाद इमरान खान को सत्ता से हटाने में अहम भूमिका निभाई थी। खान का मानना है कि उनकी जेल की सजा और सियासी निष्कासन में मुनीर का हाथ है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि मुनीर का यह प्रमोशन इमरान खान की सियासी वापसी को और मुश्किल बना सकता है।
फील्ड मार्शल का पद पाकिस्तानी सेना में पांच सितारा रैंक है, जो प्रतीकात्मक रूप से शक्तिशाली है। यह पद धारक को रिटायरमेंट के बाद भी वर्दी पहनने और विशेषाधिकारों का उपयोग करने की अनुमति देता है। मुनीर से पहले यह पद केवल जनरल अयूब खान को मिला था, जिन्होंने 1959 में खुद को यह उपाधि दी थी।
विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रमोशन सेना के बढ़ते दबदबे और शहबाज शरीफ सरकार पर इसके प्रभाव को दर्शाता है। कुछ विशेषज्ञ इसे हार की फजीहत को जीत में दिखाने की कोशिश मानते हैं, जबकि अन्य का कहना है कि यह शरीफ और मुनीर के बीच गठजोड़ को मजबूत करने का प्रयास है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल अशोक कुमार का कहना है कि शहबाज शरीफ को डर था कि मुनीर तख्तापलट कर सकते हैं, इसलिए यह पद देकर उनकी वफादारी सुनिश्चित की गई।
Updated on:
23 May 2025 12:24 pm
Published on:
23 May 2025 11:07 am
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