
Ratan Tata in Newyork
Ratan Tata sweet memories :अमेरिका न्यूयॉर्क से NRI अशोकसिंह ने बताया कि भारत सरकार की ओर से पद्म भूषण से सम्मानित आर्किटेक्ट हफ़ीज़ कांट्रैक्टर एक दिलचस्प व्यक्तित्व हैं, शायद भारत के सबसे ज़्यादा ग्लैमरस आर्किटेक्ट। न्यूयॉर्क टाइम्स प्रोफ़ाइल में उन्हें बॉलीवुड का "स्टार्किटेक्ट" बताया गया था। लेख में कॉन्ट्रैक्टर की शैली का वर्णन इस प्रकार किया गया है, "no signature, save a penchant for glitz" यानि कि ‘कोई हस्ताक्षर नहीं, केवल चकाचौंध की प्रवृत्ति"। हफ़ीज़ ने अपने स्वयं के काम के बारे में कहा, "आपको निश्चित रूप से लिपस्टिक, रूज, आई-लैश वाली महिलाऐं पसंद हैं। इसलिए यदि आप अपनी इमारत को कुछ ‘appliqués’ या सजावट के साथ और अधिक सुंदर बनाते हैं, तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।
अशोकसिंह ( Ashoksingh)ने बताया कि लगभग अस्सी के दशक की समाप्ति की बात है, बंबई से जाकर, कुछ वर्षों हैदराबाद में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। एक बड़ी उर्वरक और रसायन उत्पादक कंपनी में बड़ा काम चल रहा था, जो किसी वजह से स्थगित हो गया था। लेकिन वहाँ रहने से प्रोफेशनल सर्किट बन गया था तो छोटे मोटे इंटीरियर डिज़ाइन और आर्किटेक्चरल काम भी शुरू हो गए थे, स्थानीय लोगों के बहुत से लोगों के मौखिक अनबंध थे, कुछ शुरू हुए और बाक़ी ‘परसों’ शुरू होने के लिए नियत थे। लगभग साल निकलने के बाद जब हैदराबादी परसों का अर्थ समझ आया तो वापस बंबई आ जाना ही बेहतर लगा। यहाँ से शुरू हुआ कुछ वर्षों का इमारतों के जादूगर, हफ़ीज़ कांट्रैक्टर के साथ सफ़र एक आर्किटेक्ट एसोसिएट (पार्टनर) के रूप में।
उन्होंने बताया कि हफ़ीज़ कांट्रैक्टर ने भले ही अपनी ख़ुद की आर्किटेक्चरल प्रैक्टिस 1982 में शुरू की थी, लेकिन कुछ वर्षों में ही मुंबई और आस पास के क्षेत्रों के बिल्डर्स के मन चाहे आर्किटेक्ट बन चुके थे। हीरानंदानी गार्डेंस, जो आगे चल कर हफ़ीज़ की सफलता का प्रतीक चिन्ह बनाने वाला था, उस समय मेरे पास ही डिज़ाइन के लिए आया था,। ये मेरा सौभाग्य है कि पहले 25 एकड़ का डिज़ाइन मेरी देखरेख में ही हुआ था। इसी दौरान टाटा का एक प्रोजेक्ट आया जिसे हफ़ीज़ ने मेरे हवाले किया था, ये एक महत्वपूर्ण डिज़ाइन का काम था, जमशेदपुर, यानि कि भारत की स्टील सिटी के बीचो-बीच, ‘रूसी मोदी – सेंटर ऑफ़ एक्सलेंस’ बनाने का। यह प्रोजेक्ट और बिल्डिंग रूसी मोदी के टाटा के साथ पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में और उनकी टाटा स्टील की सफलता और विस्तार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए था।
अशोकसिंह ने बताया कि ख़ैर एक ड्रीम प्रोजेक्ट का डिज़ाइन शुरू हुआ, ऐसे काम करने का अवसर जीवन में एक आधे बार ही मिलता है, कभी अभिलाषी आर्ट-वर्क जैसी इमारत का प्रारूप तो कभी फ्रैंक लॉयड राइट के फ़ॉलिंग वाटर का ध्यान आता था। हफ़ीज़ ने इस प्रोजेक्ट में खुली छूट दे रखी थी, और हफ़ीज़ का लग-भग 80 से प्रतिशत समय ऑफिस में ही गुज़रता था, अपने एसोसिएट्स के साथ, डिज़ाइन की बारीकियां डिस्कस करने , या विचाराधीन इमारतों के नक़्शे थे, उन्हें और कैसे बेहतर बनाया जाये, इस ब्रेन स्टोर्मिंग में समय बीतता था। ख़ैर साहब, क़रीब दो महीने के बाद की तारीख़ तय थी, ऑन साइट प्रेजेंटेशन दिया। सारे प्लान से फाइनल किया गये, ब्लू प्रिंट्स, ड्राइंग्स, पर्सपैक्टिव्स (भावी इमारत का स्कैच), मॉडल सब कुछ समवाई पर तैयार किया गया। हमें बताया गया था कि जे आर डी टाटा, रूसी मोदी और रतन टाटा भी जमशेदपुर इस अवसर पर आने वाले थे। मुंबई से फ़्लाइट से कलकत्ता और वहाँ से जमशेदपुर, मशहूर हावड़ा ब्रिज पार करते हुए रेल यात्रा से पहुँचना था। हमारी ट्रिप रूसी मोदी जी के पर्सनल सेक्रेटरी मिस्टर मूर्ति के साथ बुक की गई थी।
उन्होंने बताया कि मिस्टर मूर्ति एक बहुत ही सक्षम सचिव थे, और रूसी मोदी जी की सारी व्यक्तिगत से लेकर व्यावसायिक कामों का लेखा जोखा रखते थे। उनके साथ कुछ समय बिताने पर मालूम हुआ कि वो सोते समय भी अपनी जेब में छोटी नोटबुक और पेंसिल ले कर सोते थे, और अगर कोई बात ध्यान में आ गई तो तुरंत नोट कर लेते थे। यात्रा उनके साथ बहुत सुखद रही, सारे प्रेजेंटेशन मटेरियल का जिम्मा, बंबई से ही उन्होंने ख़ुद ले लिया था। इसलिए मेरे पास कोई विशेष काम नहीं था। हम लोग आराम से कलकता पहुंचे, पहली बार वहाँ पर सड़कों पर बस और अन्य वाहनों के साथ चलती हुई ट्राम देखी। ख़ैर 3-4 घंटे रुक कर हम लोग जमशेदपुर के लिये रवाना हो गये। जमशेदपुर बहुत ही आराम देह रुकने की व्यवस्था थी। मिस्टर मूर्ति ने सुबह ऑन-साइट प्रजेंटेशन का इंतज़ाम कर दिया था। हम लोग पहले टाटा क्लब में गये, बिलियर्ड्स खेला और फिर डिनर करने के लिये निकले ही थे, कि हफ़ीज़ का संदेश आया कि अगले दिन वो नहीं आ पायेंगे और मुझे ही प्रजेंटेशन की सारी ज़िम्मेदारी सम्भालनी पड़ेगी।
अशोकसिंह ने बताया कि जीवन में शायद ही इसके पहले इतने दिग्गज व्यक्तित्व से पहले मिलना हुआ था, वो भी एक नहीं तीन-तीन, पेट में बटरफ़्लाइज़ ने चक्कर लगाने शुरू कर दिये थे, अगले दिन सुबह की कल्पना में डिनर हुआ। मूर्ति जी शायद मेरे मन की व्यथा समझ रहे थे, उन्होंने बहुत समझदारी से एक नवजवान व्यक्ति की व्यग्रता और उत्कंठा को शांत रखने में बिना ज़्यादा कुछ कहे हुए मदद की। ख़ैर साहब, अगले दिन की सुबह आ ही गई, एक उत्साह और व्यग्रता दोनों ही मन में थी, जे आर डी टाटा, रूसी मोदी और रतन टाटा से रू ब रू होने का अवसर, उनके साथ खड़े होने का अवसर, उन्हें एक व्यक्ति की तरह देखने का अवसर, उनसे हाथ मिलाने का अवसर, और सिर्फ़ एक मात्र व्यक्ति या यूँ कहें डिज़ाइनर आर्किटेक्ट के रूप में अपना डिज़ाइन उनके सामने रख कर बात करने का अवसर, once in a life-time में होने वाली होती हैं ये बातें।
उन्होंने बताया कि इसी कशमकश में अपने आप को इन महानुभावों के साथ, अपने आप को ‘रूसी मोदी – सेंटर ऑफ़ एक्सलेंस’ की भावी साइट पर, ख़ुद रूसी मोदी के साथ खड़े पाया। मिस्टर मूर्ति ने अपना काम बखूबी कर रखा था, सारी ड्राइंग्स, विज़ुअल्स आदि बाक़ायदा स्टैंड्स पर सजे थे, सारी जगह सुसज्जित और साफ़ सुथरी, पानी छिड़का हुआ, फूलों के गमले, सभी कुछ सही अपनी जगह पर। जे आर डी ने ही लीड ली सारी बात चीत में, एक दो प्रश्न रूसी मोदी जी ने भी पूछे, रतन टाटा जी अधिकतर मूक दर्शक ही बने रहे। प्रजेंटेशन सफल रहा, डिज़ाइन बहुत ही ज़्यादा पसंद किया गया। उन दिनों सेल फ़ोन या कैमरा साथ रखने का ऐसा कोई फ़ैशन नहीं था, न ही दिमाग़ में आया कि इस यादगार क्षण की कोई तस्वीर ली जाये, बस प्रोजेक्ट के अप्रूव होने की ख़ुशी और टाटा के सिरमौर से और इन हस्तियों के आमने सामने हो पाने के उन्माद में अपने आप ही हवा में थे।
अशोकसिंह ने कहा कि उसी दिन शाम को वापसी थी, मिस्टर मूर्ति के साथ, उन्होंने सारे सामान की देखरेख करवा दी थी, जो ऑफिशियल सामान बंबई में हफ़ीज़ के ऑफिस वापस जाना था, उसका इंतज़ाम बख़ूबी कर दिया था। हवाई जहाज़ की यात्रा के दौरान उन्होंने एक लिफ़ाफ़ा मुझे दिया जिस्म मेरी तस्वीरें थी प्रेजेंटेशन करते समय की, यादगार तस्वीरें। उस समय इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि जे आर डी और रूसी मोदी के साथ चुपचाप खड़े हो कर मेरी बातें सुनने वाले रतन टाटा जी, अगले आने वाले 25 वर्षों में भारती के आधुनिक बिज़नेस के क्षेत्र में मार्गदर्शन देने और इसे विकसित करने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति होंगे। अगले 21 वर्षों में उनके नेतृत्व में, टाटा समूह का राजस्व 40 गुना से अधिक और लाभ 50 गुना से अधिक बढ़ गया। उनके नेतृत्व में, टाटा टी ने टेटली का अधिग्रहण किया, टाटा मोटर्स ने ब्रिटिश लग्जरी कारों में, जगुआर, लैंड रोवर का अधिग्रहण किया, और टाटा स्टील ने कोरस का अधिग्रहण किया। टाटा और भारत को विश्व के मानचित्र पर एक मज़बूत इकोनॉमी के रूप में रखने में रतन टाटा बड़ी भूमिका रही है। उनके निधन पर गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने कहा कि रतन टाटा एक्स्ट्राऑर्डिनरी बिजनेस लीगेसी छोड़ गए हैं। उन्होंने भारत में मॉडर्न बिजनेस लीडरशिप को मार्गदर्शन देने और डवलप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने कहा कि रतन टाटा ने कभी विवाह नहीं किया और उनकी कोई संतान भी नहीं थी। रतन टाटा ने 2011 में कहा था, "मैं चार बार विवाह के निकट पहुंचा, किंतु प्रत्येक बार भय या किसी अन्य कारणवश पीछे हट गया।“इस महान व्यक्तित्व को उन्हीं के एक कोटेशन से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी बात को ख़त्म करता हूँ; ‘दूसरों के साथ अपनी बातचीत में दया, सहानुभूति और करुणा की शक्ति को कभी कम न समझें’। बहरहाल आज के जीवन के कार्य-शैली की विषमता को समझाते हुए, ‘मैं कार्य-जीवन संतुलन में विश्वास नहीं करता। मैं कार्य-जीवन एकीकरण में विश्वास करता हूं। अपने कार्य और जीवन को सार्थक और संतुष्टिदायक बनाएं, और वे एक-दूसरे के पूरक होंगे’।
Updated on:
13 Oct 2024 09:53 pm
Published on:
12 Oct 2024 08:55 pm
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