रूस के मित्र देश बना रहे हैं नया वर्ल्ड ऑर्डर
1. चीन-रूस कारोबार रेकॉर्ड स्तर पर (China-Russia)
यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस (Russia-Ukraine War) को सबसे अधिक और खुला समर्थन चीन से मिला है। 2022 में ही दोनों देशों ने ‘नो लिमिट फ्रेंडशिप’ पर समझौते किए। यहां तक कि दोनों देशों में द्विपक्षीय व्यापार 2022 के 189 अरब डॉलर से बढ़कर पिछले साल 240 अरब डॉलर हो गया। गौर करने के बात ये है कि ये सारा कारोबार डॉलर में नहीं बल्कि दोनों देशों की मुद्राओं के जरिए हुआ। रूस ने जहां चीन से कारें, इलेक्ट्रॉनिक्स और औद्योगिक सामान खरीदे वहीं चीन ने रूस से भरपूर तेल और गैस की खरीदारी की। रूस ने चीन को सबसे उन्नत हथियार भी उपलब्ध कराए और दोनों देश न्यूक्लियर ऊर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग कर रहे हैं। इस दौरान दोनों देशों ने कई बार अमरीका के नेतृत्व वाले वर्ल्ड ऑर्डर को चुनौती देने की बात की है।
2. भारत और रूस के सहयोग के नए आयाम (India-Russia)
तमाम दबावों को नकारते हुए भारत ने इस बीच लगातार रूस से कच्चा तेल खरीदा है और दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कच्चे तेल उपभोक्ता के रूप में रूस पर यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई है। साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश से रिश्तों ने रूस को ग्लोबल साउथ के देशों में नई स्वीकार्यता दी है।
3. सऊदी अरब, ईरान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका ने किया रूस की निंदा से इंकार
यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियान के बावजूद दुनिया के कुछ प्रमुख देश ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने कभी रूस की यूक्रेन पर हमले के लिए निंदा नहीं की। इनमें प्रमुख देश रहे हैं सऊदी अरब, ईरान, ब्राजील और हंगरी। सऊदी अरब के सहयोग से रूस ने लगातार ओपेक प्लस देशों के संगठन के जरिए दुनिया के कच्चे तेल के बाजार पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा और कच्चे तेल के दामों के प्रभावित करने में सफल रहा। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला लगातार अमरीका के डॉलर की बजाए ब्रिक्स देशों में कारोबार के लिए अपनी एक करेंसी की मांग करते आए हैं।
4. तुर्की और हंगरी ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को नकारा
नाटो सदस्य होने के बावजूद इन देशों ने कभी रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं किया। यूक्रेन के साथ खड़े रहने पर भी तुर्की ने तो रूस को यूरोप द्वारा प्रतिबंधित सामानों को हासिल करने में भी रूस की मदद की।