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ग्वालियर

थैलेसीमिया से पीडि़त दो साल में 17 बच्चों ने तोड़ा दम, 145 अब भी बीमार

थैलेसीमियासे पीडि़त बच्चे समय पर ब्लड, दवा व जांच की सुविधा नहीं मिल पाने से पिछले दो साल में 17 बच्चों ने दम तोड़ दिया। जबकि 145 बच्चे अभी भी बीमारी की चपेट में हैं

ग्वालियरAug 24, 2016 / 01:00 pm

Gaurav Sen

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अनूप भार्गव @ ग्वालियर

थैलेसीमियासे पीडि़त बच्चे समय पर ब्लड, दवा व जांच की सुविधा नहीं मिल पाने से पिछले दो साल में 17 बच्चों ने दम तोड़ दिया। जबकि 145 बच्चे अभी भी बीमारी की चपेट में हैं।

अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य में थैलेसीमिया डे केयर सेंटर में बच्चों को ब्लड चढ़ाने की सुविधा के साथ जांच व दवाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने का बोर्ड लगा है। लेकिन जांच, ब्लड से लेकर दवाएं तक मरीजों को समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। इसके पीछे का कारण बजट की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाना बताया जा रहा है। एेसे स्थिति में गरीब व सामान्य तबके के मरीजों को भगवान भरोसे रहना पड़ रहा है। जबकि इलाज संबंधी सारी व्यवस्थाएं शिशु रोग विभाग में होनी चाहिए।


जेएएच में सीरम फेरिटिन जांच मशीन होने के बाद भी नहीं हो पा रही है, वहीं एचबीएटू मशीन भी लंबे समय से बंद है। एेसी स्थिति में पीडि़तों की जांच निजी लैब पर करानी पड़ रही है। जिनमें 400 रुपए से लेकर 700 रुपए तक खर्च करने पड़ रहे हैं। थैलेसीमिया के 145 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। पहले इनकी संख्या 162 थी, लेकिन लचर व्यवस्थाओं के चलते 17 बच्चों की मौत हो गई।



तेजी से खत्म होता है खून
थैलेसीमिया अनुवांशिक बीमारी है, इसमें बच्चे में खून तेजी से खत्म होता है। करीब 20 दिन में बच्चे को नया खून चढ़ाना पड़ता है। खून चढऩे से शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है। जिसको कंट्रोल करने के लिए डेसीरोक्स, एस्यूनारा और केलफर टेबलेट नियमित लेना पड़ती हैं, साथ ही सीरम फेरिटिन जांच भी करानी पड़ती है। यदि समय पर खून नहीं मिले या फिर दवाएं नहीं मिले तो बच्चे की मौत हो जाती है। 

पीडि़त बच्चों की बीमारी बढ़ रही है
समय पर ब्लड, दवा व जांच नहीं हो पाने से पीडि़त बच्चों की बीमारी बढ़ रही है। पिछले दो-तीन साल में 17 बच्चे मौत के शिकार हो चुके हैं। बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए शासन को कुछ करना चाहिए।
केएल भम्बानी, अध्यक्ष, थैलेसीमिया सोसायटी

जनरल बजट से दवा मंगाई है
जनरल दवा के बजट से थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों के लिए दवा मंगाई हैं। अलग से हमारे पास कोई बजट नहीं आता, क्योंकि पीडि़त हमारे यहां भर्ती या इलाज के लिए नहीं आते।
डॉ.डीडी शर्मा, सिविल सर्जन 

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