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जब Atal Bihari Vajpayee ने मौत को ललकार कर लिखा था ‘मौत से ठन गई’ आज फिर पढ़िए अटल की लिखी वो कविता…

Atal Bihari Vajpayee Poetry : अटल बिहारी वाजपेयी की आज फिर 'मौत से ठन गई', पढ़िए वह कविता जो अमेरिका में लिखी थी।

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आगरा

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suchita mishra

Aug 16, 2018

पूर्व प्रधानमंत्रीअटल बिहारी वाजपेयी को दुनियाभर में एक सशक्त राजनेता के रूप में जाना जाता है। उनका भाषण, उनकी बोलने की शैली और उनकी लेखनी के लोग कायल रहे हैं। अटल आगरा के छोटे से कस्बे बटेश्वर के रहने वाले थे। उनका जन्म बेहद साधारण परिवार में हुआ था। पिता टीचर थे साथ ही कवि भी थे। लिहाजा अनुशासित जीवन और धारदार कलम की ताकत उन्हें विरासत में मिली।

लंबे समय से बीमार चल रहे atal bihari vajpayee हालत बुधवार को काफी गंभीर हो गई। उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में लाइफ सपोर्ट पर रखा गया। पूरे देश में उनके जीवन के लिए दुआएं मांगी जा रही हैं। आपको बता दें कि वर्ष 1988 में जब अटल बिहारी वाजपेयी अपनी किडनी का इलाज कराने अमेरिका गए थे, तब उन्होंने मौत को आंखों के सामने महसूस किया था और उसे हराने का जज्बा दिखाते हुए एक कविता लिखी थी। आज अटल बोल पाने और लिख पाने में असमर्थ हैं। लेकिन ऐसे समय में उनकी वो कविता फिर से मन में उनकी जीत की उम्मीद बांधती नजर आ रही है। पेश है अटल की लिखी वो कविता।

ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।