
Bharat bandh
डॉ. भानु प्रताप सिंह
आगरा। भारत में दहेज के लिए बहुओं को जलाया जाता था, आज भी ऐसा हो रहा है। इसकी रोकथाम के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया। दहेज के लिए बहुओं को प्रताड़ित करने वाले थोड़ा सहमे। लेकिन यह क्या, प्रत्येक मौत को दहेज के लिए हत्या मान लिया गया। फिर पति, सास, श्वसुर, देवर, ननद, नंदोई आदि को जेल होने लगी। जो ननद अपनी ससुराल में रह रही है, वह हत्या में शामिल कैसे हो सकती है? लेकिन पुलिस को गिरफ्तारी करनी पड़ती है। जमानत हाईकोर्ट से होती है। इस एक्ट के खिलाफ आवाज बुलंद हुई।
यह भी पढ़ें
इस एक्ट का भी दुरुपयोग
अब बात करते हैं अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्चाचारों की रोकथाम) 1989 एक्ट (SC-ST Act) की। आगे बढ़ने से पहले एक घटना यहां बताना जरूरी है। सेन्ट्रल एक्साइज विभाग में अधीक्षक के पद पर तैनात एक व्यक्ति ने तीन पत्रकारों के खिलाफ अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्चाचारों की रोकथाम) 1989 एक्ट के तहत शासन से शिकायत की। जांच शुरू हो गई। जब नोटिस आए तो हम पत्रकार अचंभित रह गए। जांच में कुछ नहीं मिला तो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए प्रार्थनापत्र जिलाधिकारी को दिया। इसमें पत्रकारों के नाम लिखते हुए कहा कि मेरे घर पर आए, थूका और जातिसूचक शब्द कहे। साथ में एक सवर्ण की गवाही दी गई। उस समय व्यवस्था थी कि सर्वण व्यक्ति की गवाही जरूरी है। जब हमें इस शिकायत की जानकारी मिली तो सोच में पड़ गए कि सेन्ट्रल एक्साइज में अधीक्षक रहते हुए दलित है और उत्पीड़न हो रहा है। जैसे-तैसे इस केस से बचे। आज भी उस व्यक्ति का बहिष्कार चल रहा है।
यह भी पढ़ें
Breaking News: शांतिपूर्ण भारत बंद के दौरान उपद्रव, बस में तोड़फोड़, पुलिस ने लाठीचार्ज कर खदेड़े उपद्रवी
पैसे देकर बचती है जान
इस तरह के अनेक उदाहरण हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह से SC-ST Act का दुरुपयोग किया जा रहा है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था की थी कि एससी एसटी एक्ट में रिपोर्ट होने पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। पहले राजपत्रित अधिकारी जांच करेगा। केन्द्र सरकार ने Supreme Court के इस आदेश को पलट दिया और पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी। सवर्ण समाज इसका विरोध कर रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है। पहले पुलिस नाम और शामिल करने के लिए खेल करती है, फिर रिपोर्ट दर्ज कराने वाला सौदेबाजी करता है। कुल मिलाकर पैसे देकर ही जान बचती है। अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुमंत गुप्ता की पहल पर एससी-एसटी एक्ट की मुखालफत हो रही है। उन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश में एक्ट के खिलाफ अलख जगाई है। आगरा में सर्वसमाज को एक मंच पर लेकर आए।
यह भी पढ़ें
एससी आयोग के अध्यक्ष ने क्या कहा
एससी एसटी एक्ट को लेकर छह सितम्बर, 2018 को Bharat Bandh है। कहीं अधिक तो कहीं मामूली बंद है। कोई सांसद और विधायक प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामशंकर कठेरिया ने प्रेसवार्ता में यह जरूर कहा कि एक्ट में कोई संशोधन नहीं किया गया है, भ्रम फैलाया जा रहा है। फतेहपुर सीकरी से सांसद चौधरी बाबूलाल ने वैश्य समाज से कहा कि दो अप्रैल की तरह आंदोलन करे। दो अप्रैल को दलितों ने भारत बंद के दौरान हिंसा की थी। पांच घंटे तक कलक्ट्रेट पर कब्जा जमाए रखा था। पुलिस चौकी में आग लगा दी थी। छीपीटोला में फायरिंग हुई थी।
यह भी पढ़ें
प्रतिक्रिया देने से बच रहे
बात-बात पर प्रतिक्रिया देने वाले भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। उन्हें चिन्ता सिर्फ वोट की है। समर्थन करते हैं तो दलित समाज नाराज होगा और विरोध करते हैं तो सवर्ण नाराज हो जाएंगे। बहुजन समाज पार्टी को चिन्ता इसलिए नहीं है कि उसका वोट बैंक सुरक्षित है। मैंने भारतबंद पर प्रतिक्रिया के लिए कांग्रेस के जिलाध्यक्ष दुष्यंत शर्मा और भाजपा के महानगर अध्यक्ष विजय शिवहरे को फोन मिलाया तो बंद मिला।
यह भी पढ़ें
चिन्तनीय
भारत बंद का लाइव करते समय सुबह कुछ लोगों से बातचीत की। उन्हें नहीं पता कि भारत बंद क्यों है? नदीम ने कहा- भारत बंद है और हम भारतीय हैं, इसलिए दुकान बंद कर दी है। कुछ लोगों को तो एससी-एसटी एक्ट के बारे में भी पता नहीं है। हां, कुछ टेम्पो चालक अजय सिंह चौहान ने कहा कि आरक्षण का विरोध हो रहा है। अगर आरक्षण न होता तो हमें टेम्पो नहीं चलाना पड़ता। पढ़ने के बाद भी कुछ कर नहीं पाए।
यह भी पढ़ें
क्या कहते हैं समाजशास्त्री
समाजशास्त्री डॉ. वेद त्रिपाठी कहते हैं कि भारत बंद का असर हो या नहीं, लेकिन सामाजिक ताना-बाना टूट रहा है। हम पहले से ही जातिगत विद्वेष से पीड़ित हैं और एससी-एसटी एक्ट के बाद स्थिति भयावह होने वाली है। बीच में खबर आई थी कि एससी-एसटी को निजी क्षेत्रों में नौकरी पर नहीं रखेंगे, क्योंकि रिपोर्ट दर्ज कराने का भय है। यह एक्ट 1989 से प्रभावी है, लेकिन अचानक ही विरोध से यह प्रकट होता है कि सवर्ण कहीं न कहीं पीड़ित हैं। एक और तो हम जाति तोड़ने की बात करते हैं और दूसरी ओर एक्ट के माध्यम से जातिगत विभेद बढ़ रहा है। हुक्मरानों को सिर्फ वोट की चिन्ता होती है। उन्हें सामाजिक सद्भाव के बारे में भी सोचना चाहिए।
शायर अमीर अहमद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा-
सांस मुझको भी इसमें लेनी है, क्यों फिजाओं में जहर घोलू मैं...।
यह भी पढ़ें
Updated on:
06 Sept 2018 01:03 pm
Published on:
06 Sept 2018 11:29 am
बड़ी खबरें
View Allआगरा
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
