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Guru Pradosh Vrat : जानिए कब और कैसे रखें प्रदोष व्रत, क्या है व्रत कथा व दिन के मुताबिक इसका महत्व

Guru Pradosh Vrat 2018 : जानिए प्रदोष व्रत तिथि, पूजा विधि, व्रत कथा, महत्व व दिन के मुताबिक मिलने वाले फल के बारे में पूरी जानकारी।

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आगरा

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suchita mishra

Aug 08, 2018

Shiv

Shiv

हर माह एकादशी की तरह प्रदोष व्रत भी दो बार आता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का अलग अलग महत्व होता है। 9 अगस्त को गुरु प्रदोष का व्रत है। गुरुवार का प्रदोष व्रत रखने से दुश्मनों का नाश होता है। जानिए प्रदोष व्रत के महत्व, व्रत व पूजा विधि और दिन के अनुसार मिलने वाले फल के बारे में।

ये है महत्व
शास्त्रों में प्रदोष व्रत को काफी शुभ और श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है व भक्त को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा प्रदोष का संबंध चंद्र से होता है। जब व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा की खराब स्थिति होती है तो वो व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से परेशान रहता है। इस कारण उसके सभी काम बिगड़ते हैं। प्रदोष का व्रत रहने से चंद्र की स्थिति में सुधार होने लगता है। इससे व्यक्ति का भाग्य जाग जाता है।

वहीं शास्त्रों में प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान करने के समान पुण्य की बात कही गई है। इस व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं व सभी कष्टों को दूर करते हैं। चूंकि सावन शिव का ही महीना माना जाता है, ऐसे में सावन में पड़ने वाले प्रदोष की अहमियत और भी बढ़ जाती है।

व्रत के दौरान ऐसे करें पूजन
प्रात: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद पूजा के स्थान पर हाथ में पुष्प, चावल और दक्षिणा लेकर व्रत का संकल्प करें। संभव हो तो दिन में आहार न लें। प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले के समय में भगवान शिव का पूजन करें। पूजन के लिए सबसे पहले स्थान को गंगाजल या जल से साफ करें। फिर गाय के गोबर से लीपकर उस पर पांच रंगों की मदद से चौक बनाएं। प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुश के आसन का प्रयोग करें। पूजन की तैयारी करके ईशानकोण यानी उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान शंकर का ध्यान करें। इस व्रत के पूजन के दौरान सफेद कपड़े पहनना अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजन के दौरान भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल, चंदन, पुष्प, प्रसाद, धूप आदि अर्पित करें। इसके बाद प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। अंत में आरती गाएं फिर क्षमायाचना करें और प्रसाद वितरण करें।

दिन के मुताबिक मिलता फल
1. सोमवार के दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
2. मंगलवार के दिन व्रत रखने से बीमारियों से राहत मिलती है।
3. बुधवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
4. बृहस्पतिवार को व्रत रखने से दुश्मनों का नाश होता है।
5. शुक्रवार को व्रत रखने से शादीशुदा जिंदगी एवं भाग्य अच्छा होता है।
6. शनिवार को व्रत रखने से संतान प्राप्त होती है।
7. रविवार के दिन व्रत रखने से अच्छी सेहत व उम्र लम्बी होती है।

गुरु प्रदोष कथा
एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। यह देख सभी देवता भयभीत हो गुरु बृहस्पति की शरण में पहुंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दे दूं। वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह राजा चित्ररथ था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देखकर उसने उनका उपहास किया। चित्ररथ के वचन सुन माता पार्वती क्रोधित होकर माता पार्वती ने उसे राक्षस होन का शाप दे दिया। चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्रासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है। इसलिए उसे परास्त करने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करना होगा। इसके लिए हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत का व्रत करो। देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शान्ति छा गई।