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गुरु पूर्णिमा महोत्सवः राधास्वामी मत के गुरु दादाजी ने कहा- हजूर महाराज राजी तो क्या करेगा काल ***** .

-राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन में मनाया गया गुरु पूर्णिमा महोत्सव -सत्संग के बाद गुरु चरणों में मत्था टेकने के लिए सत्संगियों की लाइनें लगीं -सत्संगियों को निराश होने की जरूरत नहीं है, कोई भी खाली नहीं रहेगा

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dadaji maharaj

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आगरा। राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा में गुरु पूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। समाध पर सत्संग हुआ। राधास्वाम मत के गुरु प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज) को प्रसन्न करने के लिए भजन गाए गए। गुरु की कर हर दम पूजा, गुरु समान कोई देव न पूजा। गुरु रूप धरा राधास्वामी, गुरु से बढ़ नहीं अनामी। तुम हो हमरे हम हैं तुमरे क्यों न हम मिल जाएं, भजन करा दो ध्यान बना दो शब्द रूप हो जाएं। इस मौके पर दादाजी महाराज ने धार्मिक क्रांति का आह्वान किया। कहा- हजूर महाराज राजी तो क्या करेगा काल पाजी। गुरु के चरणों में मत्था टेकने के लिए पूरे दिन लाइन लगी रही।

राधास्वामी मत में गुरु भक्ति पर जोर

दादाजी ने कहा- गुरु की भक्ति करनी है। हमारे मत में गुरु भक्ति पर जोर है। सुरत शब्द योग और गुरु भक्ति। अपने समकालीन गुरु को ढूंढकर उनके साथ प्रीत का रिश्ता बांधना चाहिए। जैसे-जैसे मालिक का विश्वास होत जाएगा, गुरु के चरनों में प्रीत बढ़ती जाएगी, इसीलिए हमारे यहां जितने पर्व मनाए जाते हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण गुरु पूजा है। गुरु पूर्णिमा के दिन पूर्णता को प्राप्त करें। पूर्णता को प्राप्त करने के लिए ये काम धीरे-धीरे आसानी से होता है। जितनी उनकी दया और मेहर अंतर में होती जाएगी, उतना ही परिवर्तन होता जाएगा।

झूठ के राग से बचें सत्संगी

उन्होंने कहा- इस दुनिया में आज के जमाने में बहुत तकलीफ, खुदगर्जी और वियोग बढ़ा है। इस कदर हद हो गई है कि झूठ का राग हो गया है। एक जमाना था जब सच की महिमा होती है। इस समय झूठ की महिमा हो गई है। ऐसी परिस्थिति से सत्संगी को बचना चाहिए। सतसंग में आने और बचन सुनने से, हजूर महाराज के दर्शन करने से परिवर्तन आएगा।

गुरु को प्रसन्न रखें ताकि उनकी प्रसन्नता आपको मिल सके

दादाजी महाराज ने कहा- जब कुछ चीजें दुष्कर हो जाती हैं तब परिवर्तन आता है। जहां कभी भी क्रांति हुई है, परिवर्तन हुआ है, उससे पहले की हालत बहुत खराब थी। तब एक संत क्रांति हुई और उससे परिवर्तन आया। एक धार्मिक क्रांति की आवश्यकता है। दुनिया में इस कदर फसाद और वैमनस्य पैदा हो गया है कि एक अच्छा नेक इंसान को जिन्दगी जीना दुष्कर हो गया है। ऐसी परिस्थिति में दो बातें हैं, एक कुल मालिक से प्रार्थना और उनसे दया मांगना। दूसरी दृढ़ता के साथ अपनी कार्रवाई करना और दुनिया की परिस्थिति से बचना। राधास्वामी नाम का सुमिरन करना है और गुरु पर सर्वस्व न्योछावर करना। गुरु राजी तो कर्ता राजी। उनकी आज्ञा पर चलें। गुरु को प्रसन्न रखें ताकि उनकी प्रसन्नता आपको मिल सके। गुरु की रजामंदी रखनी है। इसके लिए आज का दिन गुरु को प्रसन्न रखने का प्रमुख दिन है। हजूर महाराज राजी तो क्या करेगा काल पाजी।

सत्संगियों को निराश होने की जरूरत नहीं

दादाजी ने कहा- सत्संगियों को निराश होने की जरूरत नहीं है। मालिक की मौज बढ़ रही है। अपने कर्तव्यों को निभाएं। चौबीस घंटे में देखें कि आप कितना समय परमार्थी कार्यवाही में दे सकते हैं। प्रेमपत्र, प्रेमबानी, सारवचन पढ़िए। आपस में परमार्थी चर्चा कीजिए। दुनियादारी की बात दुरुस्त नहीं है। मालिक सबका काम बनाएंगे। कोई खाली नहीं छूटेगा। इसलिए निराशा नहीं होनी चाहिए। हमें मालिक की दया पर निर्भर करना चाहिए, फिर देखो क्या से क्या हो जाता है। जो कहीं नहीं हो सकता, वह यहां हो सकता है। दो दुनिया में होता है, वह यहां नहीं होगा। मालिक का प्रेम यहां मिलेगा और प्रेम से बढ़कर और कोई तत्व नहीं है, जिस पर जीव आधारित होकर खुश रह सकता है। प्रेमाभक्ति को चलाना होगा। कुल मालिक राधास्वामी दयाल पर पूरा भरोसा रखना होगा। वे अपनी दया से प्रेम की बख्शीश करेंगे। दुनिया में अन्याय होता है, यह काल का खेल है। जैसे चोर चुपचाप घुसता है, ऐसे ही काल घुसता है। सुरत की संभाल मालिक बराबर करते रहते हैं। हमारा संबंध सुरत से है, जो मालिक का शब्द रूप है। सुरत उनका अंश है, जिसकी रक्षा वे पूरे तौर पर करते हैं। आपकी प्रीत और प्रतीत हजूर महाराज के चरणों में बढ़ती चली जाए और उनकी दया से कोई खाली न रहे।

पत्रिका के माध्यम से दादाजी महाराज का संदेश

प्रेम का संदेश है। प्रेम से रहना चाहिए। लड़ाई झगड़े खत्म होने चाहिए। लोगों के अंदर एकदूसरे के प्रति सद्भाव बढ़े, सब मिलकर रहें। दुनिया में तो बहुत फरेब और झूठ है लेकिन सत्संगी प्यार से रहें। मैं इसी पर जोर देता हूं। आज इसी की जरूरत है। गुरु के प्रति श्रद्धा का भाव कम नहीं हो सकता है। मालिक को तो मानना ही होगा। गुरु तो मालिक के प्रतिनिधि हैं। हर एक को गुरु नहीं कह सकते हैं। ज्यादातर शिक्षक हैं। मैं तो इक ही बात जानता हूं प्रेम। एक ही संदेश है प्रेम। मेल मिलाप बढ़े।