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‘धिक्कार दिवस’ पर डॉक्टर, दूर दराज से आए मरीज बिना दिखाए लौटे

एनएमसी बिल के विरोध में एक दिन की हड़ताल पर डॉक्टर, 12 घंटे की हड़ताल  

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आगरा

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Abhishek Saxena

Jul 28, 2018

ima doctor

'धिक्कार दिवस' पर डॉक्टर, दूर दराज से आए मरीज बिना दिखाए लौटे

आगरा। सरकार चिकित्सा क्षेत्र में एनएमसी बिल लाने का प्रयास कर रही है। लेकिन, एनएमसी बिल का विरोध आईएमए चिकित्सक लगातार कर रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए प्रदर्शन के बाद आगरा सहित अन्य जनपदों में आईएमए चिकित्सकों ने हड़ताल शुरू कर दी है। चिकित्सकों की हड़ताल का असर दिखना शुरू हो गया है। मरीजों को इस हड़ताल की जानकारी जब हुई तो वे लाचारी से लौटने लगे। आगरा में आईएमए के एक हजार से अधिक डॉक्टर आज 12 घंटे की हड़ताल पर हैं। इमरजेंसी सेवाओं को इस हड़ताल से दूर रखा गया है।

क्लीनिक पर लगाए नोटिस
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारी डॉ.सुनील शर्मा का कहना है कि देश में डॉक्टरों के पंजीकरण और कानून बनाने वाली मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया को समाप्त कर नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन किया जा रहा है। आईएमए लगातार इसका विरोध कर रही है। इस बिल के लागू होने से प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और निजी संस्थानों की मनमानी बढ़ जाएगी। आईएमए इस बिल को पास नहीं होने देगा। चाहे कुछ भी करना पड़े। आईएमए के डॉक्टर सदस्यों ने अपने क्लीनिक के बाद हड़ताल के नोटिस चस्पा कर दिए हैं। बता दें कि कई बार डॉक्टर प्रदर्शन कर इस बिल का विरोध दर्ज करा चुके हैं। हाल ही में साइकिल रैली निकालकर भी भाजपा सांसद चौधरी बाबूलाल को ज्ञापन दिया गया था।

शहर में 1140 डॉक्टर, 25000 मरीज रोजाना आ रहे
शहर में आईएमए से रजिस्टर्ड 1140 चिकित्सक हैं। विभिन्न बीमारियों से ग्रसित मरीजों की ओपीडी की संख्या करीब 25000 होती है। चिकित्सा क्षेत्र में 12 घंटे की हड़ताल के बाद मरीज या तो लौटने को मजबूर हो रहे हैं या फिर सरकारी अस्प्तालों की ओर जा रहे हैं। हालांकि आईएम चिकित्सकों ने इमरजेंसी सेवाओं को इस हड़ताल से दूर रखा है। आईएम चिकित्सक डॉ.आलोक मित्तल का कहना है कि सरकार चिकित्सकों पर मनमानी कर रही है।

ये हैं डॉक्टर्स की मांगें

-पीसीपीएनडीटी एक्ट के लिपिकीय त्रुटि को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए, अंदर इंटरमिनिस्ट्रियल कमेटी के रिपोर्ट को लागू किया जाए
-इलाज व जांच की प्रक्रिया का अपराधिकरण न होने दिया। यानि इलाज एवं जांच में लापरवाही की शिकायत थाने में न होकर सीएमओ या एमसीआई को की जानी चाहिए।
-एमसीआई में सुधार किया जाए न कि एमसीआई को भंग कर नेशनल मेडिकल कमीशन को थोपा जाए।
-डॉक्टर एवं मेडिकल सेक्टर पर हिंसा मारपीट एवं तोड़फोड़ के खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए।
-डॉक्टर व उनके चिकित्सा प्रतिष्ठानों के रजिस्ट्रेशन को एकल विंडो के माध्यम से किया जाए व लाइसेंस राज को समाप्त किया जाए। नेशनल एग्जिट टेस्ट के प्रस्ताव को खारिज किया जाए। उसके स्थान पर एक समान फाइनल एमबीबीएस परीक्षा कराई जाए।
-केवल जेनरिक दवाओं को लिखने की बाध्यता न हो। जेनरिक व ब्रांडेड दवाओं के रेट में बहुत अंतर न हो।
-डॉक्टरों द्वारा इलाज व जांच लिखने की पेशेवर स्वतंत्रता मिले। इलाज की प्रक्रिया में सरकारी दखल बंद हो।
-आवासीय क्षेत्र में चलने वाले क्लीनिक डायग्नोस्टिक सेंटर, नर्सिंग होम को जन उपयोग की सुविधा के तहत लेंड सिलिंग से मुक्त रखा जाए।
-एलोपैथिक दवा लिखने के लिए केवल एलोपैथिक डॉक्टरों (एमबीबीएस व बीडीएस डॉक्टरों) को अधिकृत किया जाए।
-हेल्थ बजट बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत बढ़ाकर किया जाए। जो कि व4तमान में लगभग एक प्रतिशत है।
-प्रस्तावित क्लीनिकल स्टेबलिशमेंट एक्ट को खारिज किया जाए। उसके स्थान पर वर्तमान सीएमओ रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था को सुधार के साथ ऑनलाइन किया जाए।