विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि बाहर से हमें हमारा शीशा भी संवार देता है, लेकिन भीतर से सिर्फ भगवान या भगवान की कथा ही संवार सकती है। उपदेश दूसरे को सुधारने के लिए और कथा होती है खुद को संवारने के लिए। कथा हमें भीतर से संवारती। कथा सुनने का मौका भाग्य से भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है। कथा प्रयास से नहीं प्रसाद के रूप में सुनने को मिलती है। प्रसाद लेने के लिए कतार में लगना पड़ता है, हाथ पसारना पड़ता है। अहंकारी को कभी यह प्रसाद नहीं मिलता, सिर्फ विनम्र ही कथा का प्रसाद पा सकता है। सात सुमंगल शगुन सुधा, साधु, सुरुतरू, सुमन आदि सभी कथा में एक स्थान पर मिलते हैं। कथा भगवान के मनोरथ भी पूर्ण करती है, फिर हम तो सान है। शैलपुत्री व शिवजी के संवाद के वर्णन करते हुए कहा कि पार्वती ने प्रशन किया कि ब्रह्म तो निर्गुण और निराकार है, फिर श्रीराम को ब्रह्म कैसे हुए? शिवजी ने कहा कि ब्रह्म स्वतंत्र चेतना है, जिसमें सगुण और निर्गुण का कोई भेद नहीं। वह सूक्ष्म बी है और विराट भी। निराकार का अर्थ जिसका कोई एक आकार न हो। अंत में श्रीराम जी की आरती कर सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया।
इस अवसर पर मुख्य रूप सांसद रामशंकर कठेरिया, उदयबान सिंह, सतीश ग्रवाल, मुरारीलाल फतेहपुरिया, मंगलम परिवार के अध्यक्ष दिनेश बंसल, राकेश अग्रवाल, हेमन्त भोजवानी, महावीर मंगल, महेश गोयल, कमल नयन, घनश्याम, निखिल गर्ग, रेखा अग्रवाल, पूजा भोजवानी, आशा अग्रवाल आदि उपस्थित थे।