
लेखपाल
आगरा। उत्तर प्रदेश में लेखपालों की हड़ताल चल रही है। योगी सरकार ने एस्मा लगाकर हड़ताल पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब लेखपाल निलंबित किए जा रहे हैं, बर्खास्त किए जा रहे हैं, लेकिन हड़ताल जारी है। इस दौरान लेखपालों ने पत्रिका से बातचीत में यूपी की 'वीआईपी कल्चर' के बारे में सनसनीखेज खुलासा किया है। लेखपालों का कहना है कि जिलों में आने वाले वीआईपी का खर्चा लेखपाल उठाते हैं। फिर चाहे वह अपनी जेब से लगाए या कहीं और से लाएं। आपको बता दें कि जिले में मुख्यमंत्री, मंत्री या अधिकारी आता है तो उसके साथ चलने वाली फौज के खाने-पीने आदि पर होने वाला खर्चा उठाने की जिम्मेदारी संबंधित तहसील के लेखपाल की होती है। लेखपालों ने ऑफ द रिकॉर्ड बताया कि सदर तहसील के प्रत्येक लेखपाल से प्रतिमाह 5000 रुपये वीआईपी के नाम पर लिए जाते हैं।
ये बोले लेखपाल
लेखपाल खुलकर कुछ भी नहीं बोलना चाहते, क्योंकि डर है नौकरी का। फिर भी वीआईपी कल्चर पर जुबान फिसल ही गई। एत्मादपुर तहसील में तैनात लेखपाल अनिल ने बताया कि जब भी किसी तहसील में कोई अधिकारी आए, या अन्य कोई वीआईपी। उनके खाने पीने और उनके साथ चलने वाले लोगों का खर्चा लेखपाल के जिम्मे डाल दिया जाता है। अधिकारियों को ये मतलब नहीं होता है, कि लेखपाल पैसा लाये कहां से। अनिल ने बताया कि सभी अधिकारी ऐसे नहीं होते हैं, कुछ ऐसे भी होते हैं, जो लेखपालों के बारे में सोचते भी हैं।
... तो होता है कष्ट
महिला लेखपाल पूजा सक्सैना ने वीआईपी कल्चर पर बोलते हुए कहा कि ये वो कल्चर है, जिसमें लेखपाल के बारे में ये सोचा जाता है, कि वह न जाने कितना वेतन पा रहा है। अतिथियों का सम्मान करना हमारे देश की परम्परा है, लेकिन सम्मान के चक्कर में जब जेब कटने लगे, तो कष्ट होता है।
लेखपाल रखते वीआईपी का खयाल
महिला लेखपात तन्नू का कहना है कि जो भी वीआईपी आते हैं, उनके खाने, घूमने की व्यवस्था कहां से आता है। ये पैसा कहां से आता है, से सारा पैसा लेखपालों से आता है। आज बाइक के लिए जो भत्ता दिया जाता है, वो तीन रुपये प्रतिदिन के हिसाब से है और जब बात डिजिटल की हो रही है, तो लेखपालों को लैपटॉप क्यों नहीं दिया जा रहा है।
Updated on:
12 Jul 2018 05:37 pm
Published on:
12 Jul 2018 05:30 pm
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