वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार अनेक रीति-रिवाज़, व्रत-त्यौहार और परंपराएं मौजूद हैं। हिंदूओं में जातक के गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार किए जाते हैं। अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है। लेकिन, अंत्येष्टि के बाद भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है। श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक है। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। लेकिन, भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसलिए अपने पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहते हैं।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है। पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है। जब जातक सफलता के बिल्कुल नज़दीक पंहुचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो ज्यादातर ज्योतिषाचार्य पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं बताते हैं। इसलिये पितृदोष से मुक्ति के लिए भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिए पिंड दान या श्राद्ध कर्म किये जा सकते हैं। लेकिन, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है। पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वज़ों का श्राद्ध करें इसके लिए वैदिक शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज़, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिए। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिए कहा जाता है। समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
अगर किसी भी तरह से जन्मकुंडली का नवम भाव या नवम भाव का स्वामी राहु या केतु से ग्रसित है, तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आता है। इसके साथ ही यदि छाया ग्रह राहु किसी भी मान्यता प्राप्त ग्रह के साथ युति बनाए तब भी वह पित्र दोष की श्रेणी में आएगा। उदाहण के लिए यदि राहु, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र या शनि अर्थात छाया ग्रह राहु इन उपरोक्त मान्यता प्राप्त ग्रहों में से किसी भी एक ग्रह के साथ भी युति बनाकर किसी की भी जन्मकुंडली में उपस्थित हो तो भी वह जन्मकुंडली पित्र दोष की श्रेणी में आएगी। वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने पितृ दोष के लिए उपाय के संदर्भ में बताते हुए कहा कि सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड़ के पास जाइए। उस पीपल के पेड़ को एक जनेऊ दीजिए और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिए। पीपल के पेड़ की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिए और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड़ की दीजिए। हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिए। परिक्रमा करते वक्त “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते रहें। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड़ और भगवान विष्णु के लिए प्रार्थना कीजिए और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुए हैं उनके लिए क्षमा मांगें। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फलों की प्राप्ति होने लगती है। और उपरोक्त भगवान विष्णु के मन्त्र का नित्य 108 बार जाप करने से भी पित्र दोष से प्रभावित व्यक्ति पर उसका प्रभाव कम होता है।