आगरा। उम्र के आखिरी पड़ाव में जहां बुजुर्गों को अपनों की जरूरत होती है, वहीं इन बुजुर्गों का जीवन वृद्धाआश्रम में व्यतीत हो रहा है। आखिर कमी कहां है, सोच में, संस्कारों में या फिर समझ में। पत्रिका टीम ने अंतराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर इस कारण को तलाशने के लिए रामलाल वृद्धाआश्रम में रह रहे बुजुर्गों से बात की, तो जबाव चौंकाने वाले सामने आये।
ये बोले बुजुर्ग
रामलाल वृद्धाआश्रम में पिछले चार वर्षों से रह रहीं दिल्ली की राधारानी शर्मा ने बताया कि गलती किसी एक की नहीं होती है। गलतियां दोनों ओर से होती हैं, लेकिन युवा पीढ़ी बुजुर्गों की गलतियों को दिल से लगा लेती है। फिर बुजुर्ग भी उसे अपनी प्रतिष्ठा बना लेते हैं। यही कारण है कि अपनों से ही बिछड़ने का दुख झेलना पड़ता है। वहीं आशारानी ने बताया कि बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें आवश्यकता नहीं रहती है बुजुर्गों की। बुजुर्ग उन पर बोझ बनने लगते हैं। वृद्ध कैलाश अग्रवाल ने बताया कि कमी है संस्कारों की। भागदौड़ भरे जीवन में पैसा तो बहुत कमाया, लेकिन बच्चों को संस्कार रूपी धन देना भूल गये।