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शोध: यमुना किनारे पेठा और सूरजमुखी उगाने से शुद्ध होगा नदी का पानी

Agra News: यमुना नदी का जल पीने योग्य बनाने के लिए आगरा के दो छात्रों ने तीन साल तक शोध करने के बाद सफलता हासिल की है। छात्रों के शोध में यह बात सामने आई है कि अगर नदी के किनारे पेठे का फल और सूरजमुखी के पौधे लगाए जाएं तो पानी गुणवत्ता में सुधार आएगा।

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आगरा

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Avinash Jaiswal

Jul 26, 2023

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Agra News:यमुना का पानी सामान्य जल की तुलना में अधिक भारी और पीने पर नुकसान दायक है, यह बात सभी जानते हैं। धार्मिक लोगों का मानना है कि वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल में कालिया नाग के नदी में आने से पानी काला हो गया पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानें तो यमुना में इंसानों द्वारा हर तरह का अपशिष्ट डालने से इसका पानी पीने लायक नहीं है,आगरा के दो छात्रों द्वारा किए गए शोध में यह जानकारी सामने आई है कि आगरा का मशहूर पेठा जिस फल से बनता है वो फल और सूरजमुखी के फूलों को यमुना के किनारे उगाने से यमुना के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।

सेंट जॉन्स कालेज के छात्रों ने किया है शोध

आगरा के सैंट जॉन्स कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग हेड ऑफ डिपार्टमेंट प्रोफ़ेसर सैमुअल गार्डन सिंह की देखरेख में सेंट जॉन्स कॉलेज के दो छात्रों ने यमुना नदी में हो रहे प्रदूषण को कम कैसे किया जाए इस पर शोध करके यमुना को प्रदूषण रहित करने में विभिन्न वनस्पति के माध्यम से अपने शोध में सफलता पाई है। सेंट जॉन्स कॉलेज की शोध छात्रा तलत खान और छात्र हरिहर ने यह सफलता तीन साल के अथक मेहनत के बाद पाई है।


सेंट जॉन्स कॉलेज के वनस्पति विभाग में कार्यरत प्रोफ़ेसर सैमुअल गार्डन सिंह और उनके शोधार्थी हरिहर और तलत खान ने यमुना नदी में पाए जाने वाले भारी धातुओं जो मानव शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। ऐसे धातुओं को प्राकृतिक तकनीक फाइटोरीमेडिएशन से कम करने और यमुना के पानी को स्वच्छ बनाने के लिए 3 साल से कार्यरत हैं । पर्यावरण में लगातार घातक भारी धातुओं जैसे प्रदूषकों की मात्रा बढ़ती जा रही है। इन हानिकारक प्रदूषकों का मुख्य स्रोत घरेलू अपशिष्ट ,व्यवसायिक अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट , कीटनाशक, चिकित्सकीय अपशिष्ट और प्लास्टिक अपशिष्ट आदि हैं। जो नदियों और उपजाऊ मृदा में मिलकर लगातार उन्हें दूषित करते जा रहे हैं।

पादप उपचार तकनीक से होगी शुद्धि

जल और मृदा संबंधी प्रदूषण को इन शोधार्थियों द्वारा प्रयोग में लाई गई पादप उपचार तकनीक का परिणाम बहुत हद तक सफल साबित हुआ है। इस पादप उपचार तकनीक में पर्यावरण से हानिकारक प्रदूषण जैसे भारी धातुओं को पौधों द्वारा स्वतः प्राकृतिक तरीके से अवशोषित किया जाता है। लेकिन इसके लिए सही पौधों का चुनाव करना आवश्यक है। जो पादप उपचार की अच्छी क्षमता रखते हैं। इसी पथ पर अग्रसर होते हुए शोध में पाया गया कि सूरजमुखी और पैठे के पौधे भारी धातुओं जैसे निखिल, लेड, कैडमियम आदि को अपनी ओर अवशोषित करने में कारगर साबित हुए हैं।


इसके साथ ही जल के फिजिको- केमिकल पैरामीटर की मात्रा भी पहले से काफी हद तक कम पाई गई है ।और पानी में मौजूद घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई। ।परिणाम स्वरुप यह चुने हुए पौधे यमुना नदी और उसके आसपास की मिट्टी को वापस स्वच्छ करने में सफल सिद्ध हुए हैं। लेकिन इस पादप उपचार तकनीक को पूर्ण रूप से प्रदूषित जगहों को प्रदूषण रहित करने में तभी सफल साबित हो सकते हैं जब लगातार पर्यावरण मृदा, जल और हवा में प्रवाहित होने वाले हानिकारक प्रदूषण को पर्यावरण में पहुंचने से रोका जाए। व्यवसायिक समुदाय, सरकारों और हम सब के प्रयास से इन अपशिष्टों का प्रबंधन कर इन पर प्रदूषकों को पर्यावरण में मिलने से रोक सकते हैं और पर्यावरण को प्रदूषण रहित बना सकते हैं। सूरजमुखी और पेठे के अलावा भी कई वनस्पति ऐसी हैं जो पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाने में मदद कर सकते हैं। जैसे सदाबहार, अर्जुन ,पीपल, तथा जलीय पौधे इनके द्वारा भी मृदा को उपजाऊ और दूषित जल को प्रदूषण रहित बना सकते हैं।