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शहीद दिवस: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की ये कहानी आपने नहीं सुनी होगी

अंग्रेजों की संसद को हिलाकर रख देने वाला बम भी यहीं बनाया था।

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आगरा

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Dhirendra yadav

Mar 23, 2018

आगरा। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को अंग्रेजी हकूमत ने 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया था। उस दिन तो लोगों को कुछ मालूम ही नहीं था, लेकिन 24 मार्च 1931 की सुबह लोगों में बेचैनी थी। जब भारत मां के इन तीन वीर सपूतों के शहीद होने की खबर मिली, तो मानो दिलों में आग जल उठी हो। पूरे आगरा में बड़ा ही गमगीन माहौल था। आगरा से जुड़ी तीनों ही क्रांतिकारियों की रौचक कहानी है। पूरे एक वर्ष आगरा को इन तीनों महान क्रांतिकारियों को रखने का गौरव प्राप्त हुआ।

यहां रुके थे तीनों क्रांतिकारी
सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की आपने कई कहानियां सुनी होंगी, लेकिन एक रौचक कहानी आगरा से भी जुड़ी है। सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों ही आगरा में एक वर्ष तक नूरी गेट पर किराए की कोठी में रुके थे। यहां पर उन्होंने वहीं बम बनाया था, जिससे अंग्रेजों की संसद हिल गई थी। इस कोठी के सामने बेनी प्रसाद की दूध की दुकान थी। बेनी प्रसाद के पुत्र सीताराम ने बताया कि पिता बताते थे, कि वे तीनों प्रतिदिन उनकी दुकान पर दूध पीने के लिए आया करते थे। काफी देर तक दुकान पर बैठते थे और बातें करते थे।

नशा थी आजादी
सरदार भगत सिंह और उनके साथियों का जोश और जवानी उस समय चरम पर थी। सीताराम ने बताया कि पिता बताया करते थे, आजादी की वो दीवानिगी, सरदार भगत सिंह के लिए एक नशा थी। परिवार की न कोई चिंता थी और नाहीं जान जाने का डर। बस फिक्र थी, तो भारत मां की। सीताराम ने बताया कि पिता बताते थे, सरदार भगत सिंह खाना बहुत कम खाया करते थे, लेकिन दूध उन्हें बहुत पंसद था। वहीं उनके यहां की रबड़ी भी तीनों को बेहद पसंद थी। उनकी गिरफ्तारी के बाद तीनों को लाहौर जेल भेज दिया गया। बेनी प्रसाद अंग्रेजों की अदालत में हर महीने गवाही के लिए आगरा से जाते थे, उनके साथ आगरा के कई अन्य लोग भी यहां से लाहौर जाते थे।

डर तो था ही नहीं
सीताराम ने बताया कि पिता इन तीनों क्रांतिकारियों के बारे में जब बताते थे, तो गर्व से सीना फूल जाता था। वे बताते थे, कि जब पेशी के दौरान उन तीनों से मुलाकात होती थी, हमेशा कहा करते थे, कि बाबा रबड़ी नहीं लाए। उन तीनों के ये बोल सुन आंखें भर आती थीं, तो वे कहते थे, कि बाबा रोना क्यों, आप परेशान न हो, गवाही कैसी भी हो, हमें मिलनी फांसी ही है।

अजीब सी थी बैचेनी
सीताराम ने बताया कि 24 मार्च 1931 की सुबह, लोगों में एक अजीब सी बेचैनी आगरा में ही नहीं पूरे देश में थी। यह खबर थी सरदार भगत सिंह और उनके दो साथी सुखदेव और राजुगुरु की फांसी की। इस खबर को लोग आसपास से सुन रहे थे और उसका सच जानने के लिए यहां-वहां भागे जा रहे थे और अखबार तलाश रहे थे, जिन लोगों को अखबार मिला उन्होंने काली पट्टी वाली हेडिंग के साथ यह खबर पढ़ी कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में पिछली शाम 7:33 पर फांसी दे दी गई। इस खबर की पुष्टि होने के बाद लोगों की आंखों में आंसू थे। आगरा के उस स्थान पर लोगों की भीड़ जमा थी, जहां सरदार भगत सिंह एक वर्ष रहे थे। उनसे जुड़ी कहानियां आज भी यहां लोग अपने बच्चों को सुनाते हैं।