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352 साल बाद शिवाजी की आगरा यात्रा का सबसे बड़ा रहस्य उजागर, देखें वीडियो

locationआगराPublished: Sep 19, 2018 06:25:04 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

-राष्ट्रीय संगोष्ठी में आरएसएस के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने शिवाजी की आगरा यात्रा पर दी ऐतिहासिक जानकारी
-जापान, जर्मनी, फ्रांस, नेपोलिया बोनापर्ट ने शिवाजी की युद्धकला को पढ़ा, लेकिन हम शिवाजी महाराज को नहीं जानते हैं

dr krishna gopal

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आगरा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल का कहना है कि छत्रपति शिवाजी 1666 में आगरा में औरंगजेब से मिलने यूं ही नहीं आए थे। इसके पीछे बड़ा उद्देश्य था। जापान, जर्मनी, फ्रांस, नेपोलिया बोनापर्ट ने शिवाजी की युद्धकला को पढ़ा। हम शिवाजी को नहीं जानते हैं। मुगल शासक औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा में नजरबंद करा दिया। शिवाजी ऐसे योद्धा थे, जो घर में घुसकर मारते थे। दुनिया में ऐसा योद्धा आज तक इतिहास में हुआ ही नहीं है। विश्व की सबसे बड़ी शक्ति वाला व्यक्ति दक्षिण की राष्ट्रीय शक्तियों से लड़ते-लड़ते औरंगाबाद में मर गया। शिवाजी को इस परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए।
अपनी ताकत मनवा दी

डॉ. कृष्णगोपाल डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के पं. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम्य विकास संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का विषय था- शिवाजी की आगरा यात्रा का ऐतिहासिक महत्वः स्रोत एवं साक्ष्य। विश्वविद्यालय के खंदारी परिसर के जयप्रकाश नारायण सभागार में शुरू हुई संगोष्ठी दो दिन चलेगी। समापन 20 सितम्बर को दोपहर 12 बजे होगा। उन्होंने कहा कि शिवाजी के पिता बीजापुर के आदिलशाह के यहां नौकरी करते हैं। उनका बेटा सारी सल्तनत को हिला देने का काम करता है। कई किले शिवाजी ने जीत लिए। आदिलशाह ने शिवाजी के पिता को जेल में डाल दिया। पिता को जेल से छुड़ाने के लिए शिवाजी ने किले वापस कर दिए, लेकिन अपनी ताकत मनवा दी।
शाइस्ता खां का भय

उन्होंने कहा कि 12 वीं से 17वीं शताब्दी तक 500 वर्ष तक इस्लाम के आक्रमण से आक्रांत था भारत। तब जीजाबाई ऐसे शिवाजी को खड़ा करती है, जो बचपन से विदेशी साम्राज्य को ध्वस्त करने का संकल्प लेता है। पहाड़ी क्षेत्र में नई युद्ध कला का विकास किया। 200 लोग 2000 की सेना को हराते हैं। शिवाजी ने मुगलिया सल्तनत के 35 किले जीत लिए। औरंगजेब का मामा शाइस्ता खां को उसके महल में घुसकर मारा। आदिलशाह को भेजा गया शिवाजी को पकड़ने के लिए। शाइस्ता खां जब शिवाजी को पकड़ने के लिए निकला तो हरम की 70-80 महिलाओं को मारकर गया। चार गुनी सेना लेकर गया। शिवाजी उसे धीरे-धीरे पहाड़ की ओर ले गए और मारकर उसका सिर पहाड़ की चोटी पर लटका दिया।
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दिल्ली सल्तनत पर कब्जा करना था

जब औरंगजेब परेशान हो गया तब वह शिवाजी के पास मिर्जा राजा जय सिंह को भेजता है। शिवाजी महाराज ने मिर्जा राजा जय सिंह को पत्र लिखा- अगर तू अपने लिए दक्षिण जीतने आता तो घोड़े की लगाम पकड़कर तेरे पैरों में डाल देता। अंत में दोनों में दोस्ती हो गई। जय सिंह कहता है कि आगरा चलो। कुछ समाधान ढूंढते हैं। शिवाजी ने कहा- मेरी और मेरे बेटे की सुरक्षा की जिम्मेदारी तेरी होगी। शिवाजी हिम्मत से काम करने वाले हैं। औरंगजेब भी सब जानता है क्योंकि वह अपने तीन भाइयों की हत्या कर चुका है। हिन्दुओं पर जजिया कर लगाता है। हिन्दू धर्म विरोधी है। शिवाजी भी यह जानते हैं। वे पूरी तैयारी के साथ आए हैं। कल ही सल्तनत पर कब्जा कर लेंगे। खजाना, मंत्रिमंडल, अपना बेटा और 500 से अधिक सैनिकों को लेकर आए हैं। पूना से आगरा तक हर दो किलोमीटर पर उनके लोग बैठे हैं। अचानक औरंगजेब को अहसास हो गया कि कुछ गड़बड़ है। अचानक औरंगबेज मिर्जा राजा जय सिंह को बीच में से कहीं और भेज देता है। जय सिंह अपने बेटे राम सिंह को शिवाजी की जिम्मेदारी सौंपते हैं। औरंगजेब के दरबार में राम सिंह संभाल नहीं पाया। शिवाजी महाराज को दूर खडा किया है, क्योंकि औरंगजेब को खतरा लग रहा है कि पास आय़ा तो छलांग मारकर मार देगा। पूरा आगरा शिवाजी को देखने आया है कि यह कौन है, जिसके नाम से मुगलिया सल्तनत डरती है। शिवाजी को अपमान झिला नहीं। रामसिंह को डांटते हैं शिवाजी। शिवाजी दरबार छोड़कर बाहर चले जाते हैं। लोगों ने सलाह दी कि शिवाजी को मार दिया जाए। औरंगजेब सोचता है कि मार तो दूंगा, लेकिन राजपूत विद्रोह कर देंगे। फिर वे राम सिंह की देखरेख में शिवाजी को नजरबंद कर देता है।
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आगरा के लोगो ध्यान रहे ये बात

शिवाजी विलक्षण बुद्धि के हैं। वे संन्यास की बात करते हैं। अपने साथ आए सैनिकों को दिखावे के लिए वापस भेजते हैं, लेकिन सब यथास्थान तैनात रहते हैं। अपने पुत्र को वृंदावन में गुरुकुल में भेजते हैं। फिर बीमार होने का बहाना बनाया और नजरबंदी से फरार हो गए। औरंगजेब हाथ मलता रह गया। आगरा के लोग ध्यान रखो, एक मराठा आया था, हिन्दू पदपादशाही की स्थापना करने वाला विलक्षण रणनीतिकार आया था, जो यहां से मुगलिया सल्तनत की आँख में धूल झोंककर अपनी सेना को ले जाने में सफल हो गया, हम उस धरती के साक्षी हैं। शिवाजी अपनी माता जीजाबाई के समक्ष साधु वेश में पहुंचे। इसके बाद शिवाजी महाराज ने हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की। हिन्दू शक्ति को जाग्रत कर संगठित किया।
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कुलपति ने की अध्यक्षता

समारोह की अध्यक्षता आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविन्द दीक्षित ने दी। संचालन पं. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम्य विकास संस्थान के निदेशक और गोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर सुगम आनंद, सह संयोजक डॉ. अमी आधार निडर और डॉ. तरुण शर्मा ने किया। मंच पर प्रोफेसर कुमार रत्नम, प्रोफेसर यूए कदम (नई दिल्ली), तेज कुमार माथुर, प्रो. आरके शर्मा आदि विराजमान थे। इस मौके पर आरएसएस के प्रांत प्रचारक ड़ॉ. हरीश रौतेला, हरिशंकर शर्मा, अशोक कुलश्रेष्ठ, केशवदेव शर्मा, विधायक योगेन्द्र उपाध्याय, चौधरी उदयभान सिंह, राम प्रताप सिंह चौहान, डॉ. एनके घोष, सीएम प्रमोद चौहान, डॉ. जीएस धर्मेश, डॉ. लवकुश मिश्रा, डॉ. मनोज रावत, डॉ. बृजेश रावत, डॉ. मनोज वर्मा, डॉ. आरपी सिंह, प्रोफेसर राजेश धाकरे, डॉ. अजय शर्मा, रजनीकांत माहेश्वरी, ओम प्रकाश चलनीवाले, पंकज खंडेलवाल, विजय गोयल, संजय गोयल, शैलेन्द्र सिंह नरवार, ड़ॉ. एनके घोष, डॉ, गिरजा शंकर शर्मा आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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