
Vijay Ranjan
आगरा। फैजाबाद के साहित्यकार व उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा हाल ही में 2लाख की राशि के साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार विजय रंजन के आगरा साहित्य प्रवास के दौरान साहित्यिक संस्था चर्वणा द्वारा उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए अभिनंदन किया गया।
यहां हुआ कार्यक्रम
त्रैमासिक काव्य पत्रिका चर्वणा के संपादक व साहित्यिक संस्था चर्वणा के संस्थापक व शहर के वरिष्ठ साहित्यकार शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ के सुलभ बिहार- गैलाना रोड स्थित आवास पर आयोजित साहित्य गोष्ठी में समारोह अध्यक्ष व प्रसिद्ध हिंदी गजलकार अशोक रावत ने माला पहनाकर विजय रंजन का सम्मान किया। इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी में अपने सम्मान के प्रति आभार जताने के बाद विजय रंजन जी ने अपनी इस कविता से समां बांध दिया-तुम न देखो अभी शाम है रात है। शोख मौसम बहुत ही बदजात है। कौन कहता है ये क्षण निरर्थक है जब, इन क्षणों में हमारी मुलाकात है।
ये रहे मौजूद
अध्यक्षीय काव्य पाठ के दौरान अशोक रावत के इस शेर पर सब वाह-वाह कर उठे- न तुम बेजार होते हो न हम बेजार होते हैं। बड़ी मुश्किल से लेकिन हम कभी दो चार होते हैं। कार्यक्रम संयोजक शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ के इस गीत पर सब झूम उठे- झंझा उपल तड़ित गर्जन में मेरी अपराजेय जवानी। मैं बरखा का व्याकुल पानी, मेरी पानीदार कहानी...। कार्यक्रम में डॉक्टर राघवेंद्र शर्मा, संजीव गौतम, कुमार ललित, सुधांशु यादव साहिल, प्रोफेसर हेमराज मीणा व डॉक्टर दिग्विजय शर्मा ने भी अपनी कविताओं से सब को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम का संचालन शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ ने किया। आभार ममता वशिष्ठ ने व्यक्त किया।
Published on:
06 Jul 2018 10:32 am
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