
आगरा। आगरा का पागलखाना अपने वृहद स्वरूप को लेकर मशहूर है, इसके बावजूद आगरा की सडकों पर आपको पागल घूमते हुए मिल जायेंगे। पागलखाना होने के बावजूद इनका घर शहर की सड़कें क्यों बनी हैं, इस सवाल का जब जवाब तलाशा गया तो चौंकाने वाला मामला सामने आया। यहां तो हम बात कर रहे हैं, लावारिश की, यदि कोई परिजनों के साथ ही इलाज के लिए यहां भर्ती होना चाहता है, तो उससे इतनी प्रक्रिया कराई जाती हैं, कि वो भी घनचक्कर बन जाता है।
भर्ती करने के हैं सख्त नियम
मानसिक आरोग्यशाला में मानसिक इलाज के लिए किसी भी मरीज को भर्ती करने के बेहद सख्त नियम हैं। पहचान प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र देना होगा, वह भी मरीज और उसके साथ आये परिजन दोनों का। इसके बाद भी तसल्ली नहीं होती, तो शपथपत्र लिया जाता है। मानसिक आरोग्यशाला के मेडिकल सुपरिनटेंडेंट डॉ. दिनेश राठौर ने बताया कि यह नियम इसलिय बनाये गय हैं, ताकि कोई फर्जी तरीके से मरीज को एडमिट न करा सके। होता यह है कि फर्जी सूचनाओं के आधार पर मरीज को भर्ती कराते हैं और बाद में उन्हें लेने ही नहीं आते हैं। इसका एक अन्य कारण यह भी है कि यहां केवल यूपी के मरीजों को भर्ती किया जाता है। इसलिये मूल निवास प्रमाण पत्र मांगा जाता है।
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लावारिस पागल को भर्ती कराने की जिम्मेदारी पुलिस की
मानसिक आरोग्यशाला के प्रमुख अधीक्षक डॉ. दिनेश राठौर ने बताया कि मानसिक आरोग्यशाला में 1987 में बने निमय फॉलो किये जा रहे हैं। इसके अनुसार किसी भी लावारिस पागल को अस्पताल में भर्ती कराने की जिम्मेदारी संबंधित थानाक्षेत्र के प्रभारी की होती है। वो भी ऐसे ही किसी भी पागल को भर्ती नहीं करा सकते हैं। उन्हें पहले मरीज को सीजीएम कोर्ट में पेश करना होगा। वहां से उन्हें रिसेप्शन ऑर्डर मिलता है। इस ऑर्डर के साथ जब वे मरीज को अस्पताल लायेंगे, उन्हें तभी भर्ती किया जा सकता है।
Published on:
10 Oct 2019 12:02 pm
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