
मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया में नहीं हो देरी: हाईकोर्ट
अहमदाबाद. फर्जी डोमिसाइल सर्टिफिकेट के आाधार पर एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले का दावा करने का मामला सामने आने के बाद अब अनुसूचित जनजाति (एसटी) के शंकास्पद जाति प्रमाणपत्र के आधार पर एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले का मामला गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष आया है।
एमबीबीएस पाठ्यक्रम में अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्रों की जांच की गुहार को लेकर दायर जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से गुरुवार को जवाब पेश करने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी व न्यायाधीश वी. एम. पंचोली की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की कि मेडिकल प्रवेश की प्रक्रिया में देरी नहीं होनी चाहिए। यह भी टिप्पणी की जब तक सरकार प्रमाणपत्रों की जांच करेगी तब तक प्रवेश प्रक्रिया को लेकर देर चुकी होगी। इसलिए इस मामले में राज्य सरकार के संबंधित विभाग को जाति प्रमाणपत्रों की जांच की प्रक्रिया बताने को कहा है। यह भी बताएं कि इसमें किस तरह की पद्धति अपनाई जाति है।
समस्त आदिवासी समाज ने वकील आदित्य भट्ट की ओर से दायर जनहित याचिका में यह कहा है कि सौराष्ट्र के गिर जंगल के गिर, बरडा और आलेज इलाके में रहने वाले रबारी, भरवाड और चारण समुदाय के लोगों को ही अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किया गया है। इन इलाकों से अलग इलाकों में रहने वाले इन्हीं समुदाय के लोगों को ओबीसी के रूप में मान्यता दी गई है। ऐसे में अनेक लोगों के गलत रूप से एसटी प्रमाणपत्र प्राप्त किए जाने की आशंका है। इसमें से कई उम्मीदवारों ने एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में एसटी जाति से प्रवेश का दावा किया है। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से मेडिकल प्रवेश के दाखिले के लिए एडमिशन कमिटी फॉर प्रोफेशनल मेडिकल एजूकेशन कोर्सेस (एसीपीसीयूजीएमईसी) के समक्ष कई बार गुहार लगाई गई है, लेकिन इस मामले में उचित कार्रवाई नहीं की गई। इस कारण जो एसटी उम्मीदवार के रूप में योग्य नहीं हैं उन्हें दाखिला मिल जाए वहीं जो उचित रूप से एसटी संवर्ग में हैं वैसे विद्यार्थियों के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले से वंचित रह जाने की आशंका है। इसलिए समिति से एसटी जाति प्रमाणपत्र की वैधता की जांच का निर्देश दिया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को रखी गई है।
Published on:
18 Jul 2018 11:32 pm
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