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सहकारी प्रवृत्ति से ज्ञान विस्तार का 101 साल पुराना मार्ग

वडोदरा में एशिया की एकमात्र सार्वजनिक ग्रंथालयों की सहकारी मंडली वडोदरा. पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जहां लोगों को जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण मिलता है। एशिया में एकमात्र ऐसी ग्रंथालय सहकारी मंडली वडोदरा में संचालित हो रही है। वडोदरा सहित पूरे गुजरात में पुस्तकालय गतिविधियों का विस्तार हो रहा है। साथ ही पढ़ने […]

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वडोदरा में एशिया की एकमात्र सार्वजनिक ग्रंथालयों की सहकारी मंडली

वडोदरा. पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जहां लोगों को जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण मिलता है। एशिया में एकमात्र ऐसी ग्रंथालय सहकारी मंडली वडोदरा में संचालित हो रही है। वडोदरा सहित पूरे गुजरात में पुस्तकालय गतिविधियों का विस्तार हो रहा है। साथ ही पढ़ने की आदतों के विकास से गुजरात की संस्कृति समृद्ध हो रही है। सरकारी के साथ ही अनुदान प्राप्त ग्रंथालयों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

1910 में लाइब्रेरी विभाग

वडोदरा राज्य के पूर्व शासक सर सयाजीराव गायकवाड़ ने अपने राज्य में पठन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 1910 में एक अलग लाइब्रेरी विभाग की स्थापना की। उसी वर्ष गुजरात की सबसे बड़ी केंद्रीय लाइब्रेरी वडोदरा में स्थापित की गई।
1947 तक वडोदरा राज्य में लगभग 2,300 पुस्तकालय थे। 1911 में वडनगर में और उसके बाद के वर्षों में अमरेली, नवसारी, कड़ी, ओखा, डभोई, शिनोर, विसनगर, वरणामा, पलाणा, वसो, धर्मज, उंझा, वाघोडिया, बिलिमोरा, मेहसाणा, व्यारा, विजापुर, सोजित्रा, करनाली, करजण, संखेड़ा में पुस्तकालय बनाए गए।
कला इतिहासकार चंद्रशेखर पाटिल के अनुसार 1925 में 4 प्रांतीय पुस्तकालय, 433 कस्बा पुस्तकालय, 618 सार्वजनिक पुस्तकालय, 87 वाचनालय और 84 बड़े पुस्तकालय थे।

महिलाओं के लिए अलग से वाचनालय

1925 तक सेंट्रल लाइब्रेरी में 1.05 लाख पुस्तकें थीं और वडोदरा राज्य की अन्य लाइब्रेरी में कुल 3.78 लाख पुस्तकें थीं। वडोदरा राज्य की 70 प्रतिशत आबादी को पुस्तकालय से लाभ मिला। सेंट्रल लाइब्रेरी में महिलाओं के लिए अलग से वाचनालय थे।

1924 में गुजरात पुस्तकालय सहकारी मंडली की स्थापना

लाईब्रेरी की अधिक संख्या के कारण सर सयाजीराव गायकवाड़ ने उनके एकीकृत प्रशासन के लिए 1924 में पुस्तकालयों की एक सहकारी मंडली की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी दी। चरोरत के मोतीभाई अमीन के सक्रिय प्रयासों से गुजरात लाइब्रेरी सहायक सहकारी मंडल लिमिटेड की स्थापना हुई। पुस्तकालयों को सदस्य के रूप में शामिल किया गया। चुन्नीलाल शाह इस मंडल के प्रथम अध्यक्ष बने। मोतीभाई अमीन वडोदरा राज्य के नौकरशाह के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद अध्यक्ष बने।

वर्तमान में 1,200 से अधिक सार्वजनिक ग्रंथालय हैं सदस्य

मंडल के अध्यक्ष ठाकोरभाई पटेल का कहना है कि इस सहकारी मंडल में व्यक्ति नहीं, बल्कि सार्वजनिक पुस्तकालय सदस्य बन सकते हैं। इसकी स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि पुस्तकालयों को आवश्यक स्टेशनरी के साथ-साथ अधिकांश लेखकों और प्रतिष्ठित प्रकाशकों की पुस्तकें एक ही स्थान पर उपलब्ध कराई जा सकें। वर्तमान में 1,200 से अधिक सार्वजनिक ग्रंथालय इसके सदस्य हैं।

725 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित

सहकारी गतिविधियों के माध्यम से ज्ञान के विस्तार का यह मार्ग 101 वर्ष पुराना है। इस मंडल ने 725 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इस मंडल की ओर से उन प्रसिद्ध लेखकों की प्रथम पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं, जिनकी पुस्तकें कोई प्रकाशक छापने को तैयार नहीं था। इनमें योगेश्वर, बाबूभाई वैद्य, माधव चौधरी, नवनीत सेवक, रसिक मेहता, जयंती दलाल, गुणवंत भट्ट, खलील धनतेजवी आदि लेखक व कवि शामिल हैं। डोंगरेजी महाराज के श्रीमद्भागवत रहस्य के 20 से अधिक संस्करण प्रकाशित किए गए हैं।
वर्तमान में वडोदरा शहर में संस्था वसाहत में कार्यरत इस मंडल की ओर से पुस्तकों की बिक्री की जाती है। यहां स्थायी आधार पर 10 प्रतिशत की छूट दी जाती है। चातुर्मास के दौरान 10 प्रतिशत की अतिरिक्त छूट दी जाती है। मंडल की ओर से हर साल शिष्ट वांचन परीक्षा भी आयोजित की जाती है। केरल में लेखकों की एक सहकारी मंडली है, लेकिन पुस्तकालय की एकमात्र सहकारी मंडली वडोदरा में है।