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अढ़ाई दिन का झोपड़ा : किताबों में पढ़ा था जैसा, हकीकत में नहीं है वैसा

Ajmer News -Adhai Din Ka Jhonpra : कोई अगर किताबों में पढकऱ सदियों पुराने अढाई दिन के झोपड़े को देखने अजमेर आ रहा है तो उसे यहां आकर निराशा हाथ लग सकती है। अढाई दिन के झोपड़े की दशा देखकर कहा जा सकता है कि इसकी कद्र न तो स्थानीय प्रशासन को है और न ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को।

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अढ़ाई दिन का झोपड़ा : किताबों में पढ़ा था जैसा, हकीकत में नहीं है वैसा

अढ़ाई दिन का झोपड़ा : किताबों में पढ़ा था जैसा, हकीकत में नहीं है वैसा

अजमेर. स्थापत्य कला के नायाब नमूने और पुरामहत्व के संरक्षित स्मारक अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhonpra) अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। हकीकत यह है कि झोपड़े को चारों तरफ से अतिक्रमण (encroachment) से ढक दिया गया है। स्थिति यह हो गई कि
अंदरकोट में अढाई दिन के झोपड़े के सामने से भी निकल जाए तो पता नहीं चलता कि यहीं पर ही झौपड़ा है। झौपड़े के मार्ग को ही वहां बनी दुकानों और उनके ऊपर लगे टेंट ने ढक दिया है।

नक्कासी भी टूटी

ढाई दिन के झोपड़े की दीवार पर लिखी गई आयातें और की गई नक्कासी भी कई जगह से टूट चुकी है। इनकी दुबारा से सुध तक नहीं ली गई।

गंदगी से स्वागत
झोपड़े की सीढिय़ों पर पांव रखते ही गंदगी पसरी नजर आ जाएगी। कौनों में पान-गुटखों की पीक को थूका जा रहा है। यहां तक की अंदर की ओर पेशाबघर भी बना रखा है।


पर्यटन स्थल नहीं विश्राम स्थली
झोपड़े को देखने कम और यहां विश्राम करने के लिए लोग ज्यादा आ रहे हैं। झोपड़े में बने मेहराब के नीचे लोग आराम फरमाते मिल जाएंगे। उनके आस-पास ही जानवर भी घूमते या बैठे दिख जाएंगे।


उजड़ा गार्डन, घूमते जानवर
पंद्रह साल पहले यहां जोर-शोर से उद्यान विकसित करने की कवायद शुरू हुई, लेकिन कुछ दिनों बाद यहां लगाए गए पौधे बर्बाद हो गए। विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण बाग सजने से पहले ही उजड़ गया।


घौसलों ने बिगाड़ा सौंदर्य
मेहराब पर यहां वहां पक्षियों के घौसले बने हुए हैं। वहीं कुछ स्थानों पर मधुमक्खियों के छत्ते नजर आ रहे हैं। इन घौसलों ने झोपड़े के सौंदर्य को बिगाड़ रखा है, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा।


सीढिय़ों पर भी कब्जा
झोपड़े की सीढिय़ों पर दुकानदारों और भिखारियों ने कब्जा कर रखा है। सीढिय़ों पर न केवल गंदगी का आलम है बल्कि यह सीढिय़ां जगह-जगह से टूटी भी पड़ी हैं।

एक्सपर्ट व्यू-- -
राष्ट्रीय धरोहर का रखरखाव हम सबकी जिम्मेदारी है। दरअसल स्टाफ के अभाव में संबंधित विभाग पूरी तरह से सार संभाल नहीं कर पाता। ऐसे में बड़े एनजीओ, प्राइवेट एजेंसी और एक्सपर्ट टीम के साथ मिलकर ही इसको निखारा जा सकता है। संरक्षण की जिम्मेदारी हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की है, लेकिन मेंटेनेंस की जिम्मेदारी अगर किसी प्राइवेट एजेंसी को दे दी जाए तो अच्छे से रखरखाव हो सकेगा और पर्यटन बढ़ेगा।
-डॉ. मोहम्मद आदिल, सहायक नाजिम दरगाह कमेटी


इनका कहना है...
हम खुद चाहते हैं कि स्मारक की सुंदरता बनी रहे लेकिन स्थानीय लोगों और पुलिस का सहयोग नहीं मिलता। लोग झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में पुलिस की तैनाती भी जरूरी है। इस संबंध में फिर से बात करेंगे। साथ ही हमारे विभाग से भी कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
- वी. एस. वडिगेर, अधीक्षक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जोधपुर

क्यों पड़ा नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा

पर्यटन विभाग की साइट के अनुसार मूल रूप से अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहलाने वाली इमारत पहले एक संस्कृत महाविद्यालय था। बाद में 1198 ई. में सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी ने इसे मस्जि़द में तब्दील करवा दिया और 1213 ई. में सुल्तान इल्तुतमिश ने और ज़्यादा सुशोभित किया। किवंदती है कि इस इमारत को मन्दिर से मस्जि़द में तब्दील करने में सिर्फ अढ़ाई दिन लगे। यह भी बताया जाता है कि मराठा काल में यहां पंजाबशाह बाबा का अढ़ाई दिन का उर्स भी होता था।


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