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मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकती एआई- डॉ बाफना

- राष्ट्रीय फिजियोलॉजिकल कॉन्फ्रेंस का समापन - विभिन्न राज्यों से आए विशेषज्ञों के पत्र वाचन समाज व युवाओं में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ( एआई) के मानव मस्तिष्क का स्थान लेने का डर है लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है।

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अजमेर

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Dilip Sharma

Mar 17, 2024

मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकती एआई- डॉ बाफना

मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं ले सकती एआई- डॉ बाफना

समाज व युवाओं में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ( एआई) के मानव मस्तिष्क का स्थान लेने का डर है लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है। एआई से मनुष्य के कार्य सुविधाजनक तो हो सकते हैं लेकिन निर्णय लेने का कार्य तो मनुष्य ही करता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मशीन के कमांड के आधार पर कार्य करती है जबकि मानवीय मस्तिष्क स्वयं निर्णय लेने में सक्षम है।यह बात अजमेर के जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय के फिजियोलॉजी विभाग की संकाय प्रमुख डॉ गरिमा बाफना ने पत्रिका से बातचीत में कही। अजमेर के मेडिकल कॉलेज परिसर स्थित भीमराव अंबेडकर सभागार में चल रही तीन दिवसीय राष्ट्रीय फिजियोलॉजिकल कॉन्फ्रेंस के समापन के बाद वे पत्रिका से मुखातिब थीं।

उन्होंने कहा कि रोबोटिक सर्जरी में तात्कालिक असामान्य परिस्थितियों की जानकारी रोबोट में नहीं होती। ऐसे में उसे कमांड दे रहे चिकित्सक को निर्णय लेना पड़ता है।

स्मार्ट फोन के दुष्प्रभावों से युवाओं को सचेत करें

उन्होंने कहा कि स्मार्ट फोन का उपयोग न्यूनतम करना होगा। इससे हर आयु वर्ग प्रभावित है। हालिया शोध में फोन के अधिक इस्तेमाल से शरीर की मांसपेशियां स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होना पता चला है। इसका इस्तेमाल जरुरत से ज्यादा न किया जाए।

डाक्टर को भगवान का दर्जा रखना होगा कायममरीज व चिकित्सक के बीच रिश्तों में कुछ खटास के सवाल पर उन्होंने कहा कि मेडिकल कर रहे छात्रों को प्रथम वर्ष में ही मेडिकल एथिक्स समझाया जाएगा। मरीज का उपचार करना ही नहीं वरन उसकी मानसिक, सामाजिक व आर्थिक दशा को देखा जाएगा। जिससे मरीज के मन में चिकित्सक के प्रति उतना ही सम्मान व विश्वास पूर्व की भांति कायम रह सके।

जंक फूड व जीवन शैली ने बढ़ाए रोग

गीतांजलि से मनजिंदर कौर के पत्र वाचन में बताया गया कि युवा एक ही जगह बैठकर जंक फूड खा रहे हैं। केवल खाने के लिए नहीं खाएं बल्कि जरुरत अनुसार भोजन लें। इस तरह की जीवन शैली को बदलना होगा। डायटिंग करना भी ठीक नहीं। बल्कि क्या खा रहे हैं और कितना खा रहे हैं, इसे देखना होगा। लाइफ स्टाइल, श्रम, योगा मेडिटेशन करना होगा। बच्चों को गेजेट देने के साथ उनके दुष्प्रभावों को भी बताना होगा।खाने में बदलाव

मोटा अनाज के साथ भोजन शैली भी बदलें। बच्चे भी हाईपर टेंशन व डायबिटिज के रोगी बन रहे हैं। योग व्यायाम फिजियोलॉजी शरीर के अंग स्वत: कार्य करें। भागदौड़ वाले जीवन में सिफेथेटिक व पेरा सिंफेटिक गतिविधियों में संतुलन बनाना होगा।