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पैंथर पर टिकी हैं सबकी नजर, जिसे दिखेगा वो भाग्यशाली

विभिन्न क्षेत्रों में अधिकारियों और कार्मिकों की ड्यूटी भी लगाई गई है।

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forest dept annual census

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अजमेर.

वन विभाग की सालाना वन्य जीव गणना कुछ देर में पूरी हो जाएगी। 24 घंटे चलने वाली गणना के लिए विभाग ने 84 वाटर हॉल बनाए हैं। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में अधिकारियों और कार्मिकों की ड्यूटी भी लगाई गई है।

वन विभाग प्रतिवर्ष अजमेर, किशनगढ़, टॉडगढ़, जवाजा ब्यावर, शोकलिया, पुष्कर और अन्य क्षेत्रों में वन्य जीव की गणना करता है। इनमें पैंथर, सियार, लोमड़ी, साही, हिरण, खरगोश, अजगर, बारासिंगा और अन्य वन्य जीव शामिल होते हैं। वन्य जीव की गणना के लिए वनकर्मी विभिन्न जलाशयों के किनारे मचान बांधकर वन्य जीव की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। इस बार भी शनिवार सुबह 8 से वन्य जीव गणना शुरू हुई है। यह रविवार सुबह 8 बजे तक होगी। इसके लिए 84 वाटर हॉल बनाए गए हैं। उप वन संरक्षक सुदीप कौर ने अधिकारियों और कार्मिकों की ड्यूटी लगाई है। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं।

इन इलाकों में जुटे कार्मिक
जिले के अजयपाल बाबा मंदिर, गौरी कुंड, चौरसियावास तालाब, आनासागर, फायसागर, बरदा के कुएं के पास नरवर, बाघपुरा, लक्ष्मी माताजी, गौरीकुंड, मदार, हाथीखेड़ा, नसीराबाद और अन्य इलाकों में जलाशयों के निकट वन कर्मी मोर्चा संभाले बैठे हैं। इसी तरह किशनगढ़ में गूंदोलाव झील, ब्यावर में सेलीबेरी, माना घाटी, पुष्कर में गौमुख पहाड़, बैजनाथ मंदिर, नसीराबाद में सिंगावल माताजी का स्थान, माखुपुरा नर्सरी के निकट, कोटाज वन खंड, सरवाड़ में अरवड़, अरनिया-जालिया के बीच, नारायणसिंह का कुआं, सावर-कोटा मार्ग और अन्य वाटर हॉल में गणना जारी है।

पैंथर पर रहेगी खास नजर

जिले में पिछले पांच साल में हुई वन्य जीव गणना में पैंथर दिखाई नहीं दिया है। हालांकि यह ब्यावर-मसूदा और राजसमंद के इलाकों में कई बार आमजन को दिखाई दे चुके हैं। विभाग का दावा है, कि इस बार पैंथर को चिन्हित करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं।

गोडावण गायब, खरमौर प्रवासी पक्षी
जिले के शोकलिया वन्य क्षेत्र से गोडावण नदारद हो चुके हैं। पिछले कई साल से वन विभाग को यहां गोडावण नहीं मिले हैं। 2001 की गणना में यहां 33 गोडावण थे। 2002 में 52, 2004 में 32 गोडावण मिले। बीते पांच साल में यहां एक भी गोडावण नहीं मिले हैं। जिले का शुभंकर खरमोर प्रवासी पक्षी है। यह मानसून में ही यदा-कदा दिखता है। इसके बाद साल भर नजर नहीं आता है। हालांकि इस बार बॉम्बे नेच्यूरल हिस्ट्री सोसायटी भी टीम तीन-चार महीने से क्षेत्र का सर्वेक्षण कर रही है।


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