हालांकि कुछ श्रद्धालुओं का कहना है कि यह बांबी भी कुछ समय के लिए बंद रही थी मगर बाद में अचानक फिर से इसने दूध ग्रहण करना शुरू कर दिया। इस बारे में पुजारी धौलिया का कहना है कि बांबी में जो दूध डालते हैं वह वापस बाहर नहीं आता है। उन्होंने भी माना कि जब सुभाष उद्यान स्थित कुआं बंद हो गया था तब थान पर स्थित बांबी भी बंद हो गई थी। मगर बाद में यह फिर शुरू हो गई। यहां 365 दिन दूध चढ़ता है।
दशमी को बदलते हैं झण्डे… थान पर हर समय पांच बड़े झंडे एक प्रतिमा के समीप और चार गुंबद के समीप लगे रहते हैं। जिन्हें हर दशमी को बदला जाता है। आस-पास के व्यापारियों ने बताया कि जो भी झंडे चढ़ते हैं उन्हें आस-पास के गांवों में स्थित थान पर जब कोई झंडा बदलना होता है तो पुजारी वहां के लिए झंडा उपलब्ध कराते हैं। इतना ही नहीं मेले में काफी मात्रा में चढऩे वाले दूध की कुछ मात्रा को बांबी में डालने के बाद उसे बर्तन में एकत्र कर लिया जाता है। जिसे आस-पास के क्षेत्र में जरूरतमंद परिवारों को निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।