
Holi: चार पीढि़यों से बना रहे चंग, सधे हुए हाथों से होता है काम
अजमेर. होली के मौके पर चंग की थाप पर गलियों में घूमती टोलियां बेशक कम हो गई हो लेकिन गांवों में चंग की गूंज और मौजूदगी आज भी बरकरार है।
राजेन्द्र कुमार पंवार ने बताया कि परिवार में चार पीढ़ी से चंग बना रहे हैं। होली करीब आते ही बाजार में चंग की मांग बढ़ जाती है। चंग हाथ से बनाए जाते हैं। चंग बनाने के लिए पहले चमड़े को साफ करके पानी में भिगोया जाता है। उसे लकड़ी के घेरे के नाप का काटा जाता है। इसे चिपकाया जाकर फिनिशिंग की जाती है।बदल गया तरीका
पहले चंग को दानामेथी और सरेस से चिपकाया जाता था। लेकिन समय के साथ चिपकाने का तरीका बदल गया। बाजार में 20, 24 और 26 इंच के चंग उपलब्ध हैं। इन पर होली है सहित कई तरह के कोट्स भी लिखे जाते हैं। यह 1000 से 1500 रुपए तक बेचे जाते हैं।चार पीढ़ी से बना रहे चंग और ढोलक
राजेन्द्र कुमार ने बताया कि बचपन में दादा अम्बालाल और पिता सूरजमल को चंग, ढोलक और वाद्य यंत्र बनाते हुए देखते थे। उनसे यह कला सीखी। छोटा भाई सूरज भी वाद्ययंत्रों के कारोबार से जुड़ा है। अब परिवार की नई पीढ़ी करण और अमित भी इसी से जुड़ गए हैं।ढपली की भी डिमांड
होली के दौरान चंग के साथ ढपली और मंजीरे की भी डिमांड बढ़ जाती है। होली के दौरान टोलियां ढपली लेकर भी घूमती हैं। वहीं भजन-कीर्तन भी काफी होते हैं। ऐसे में लोग इन वाद्य यंत्रों की भी खरीददारी करते हैं।वाद्य यंत्र कीमत
चंग 1000-1500
ढपली 400-600
मंजीरे 50-300
Published on:
21 Feb 2023 12:23 pm
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