
Deepawali : यहां अब भी हाथ से बनता है लक्ष्मीजी का पाना
दिनेश कुमार शर्मा
मदनगंज-किशनगढ़ (अजमेर).
शहर में रियासतकाल से लक्ष्मीजी का पाना हाथ से बनाया जा रहा है। यहां एक परिवार करीब 100 साल से इस तरह के पाने का निर्माण कर रहा है। इन पानों का महत्व उस जमाने में अधिक इसलिए भी था कि शहर में प्रिंटिंग मशीनें ही नहीं थीं। ऐसे में कुछ लोग दीवार पर लक्ष्मीजी का पाना बनाकर पूजा करते थे तो शहर सहित 200 से अधिक गांवों के लोग यहां हाथ से बनने वाले इस पाने को खरीदने आते थे।
सदर बाजार पुराना शहर निवासी जैन पिक्चर्स के लक्ष्मणसिंह जैन (63) ने बताया कि उनके पिता उमराव सिंह जैन ने कागज पर लकड़ी के सांचे से इस तरह के पानों का निर्माण शुरू किया। इस सांचे से कागज पर तस्वीर की आउटलाइन तैयार कर दी जाती है फिर इसमें ब्रुश से वाटर कलर भरा जाता है।
इस तरह सफेद कागज पर रंगीन पाना तैयार होता है। उन्होंने बताया कि पिता उमराव जैन से उन्होंने यह कार्य सीख लिया था। अब करीब दो साल पहले पिताजी का 100 वर्ष से अधिक की उम्र में निधन हो गया, लेकिन परिवार के इस पैतृक हुनर को उन्होंने आज भी जिंदा रखा हुआ है। वे आज भी इन तरह के पानों का सांचों के जरिए हाथ से निर्माण कर रहे हैं।
कभी बिकता था 10 पैसे में
जैन ने बताया कि हाथ से कागज पर बना यह पाना किसी जमाने में मात्र 10 पैसे में बिकता था, तब यह 2 से 3 हजार तक की संख्या में बिक जाया करते थे। तब मदनगंज से व्यापारी इन पानों को खरीदकर ले जाते और वहां इनकी बिक्री करते थे।
अब ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस के जमाने में इनकी बिक्री की संख्या में काफी कमी आई है, लेकिन आज भी ऐसे कई लोग हैं जो दशकों से इस हाथ से बने पाने को खरीदने आते हैं। अब इन्हें बिना लाभ-हानि के 20 रुपए में बेच रहे हैं। अब भी करीब 300 तक पाने बिक जाते हैं।
क्या-क्या है इस पाने में
इस पाने में 15 यंत्र, लक्ष्मीजी का फोटो 9 हाथी और फूल-पत्तियां बनाई गई हैं। इनमें हाथियों की संख्या कम ज्यादा भी है। कुछ पाने 7 हाथी तो कुछ 5 और 9 हाथी के बने होते हैं।
Published on:
25 Oct 2019 06:56 pm
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