scriptRBSE- कॉपियां जांचने वाले परीक्षक निडर, बोर्ड कार्य से डिबार का नहीं असर | Examiners who check copies are fearless, no effect of debar from board | Patrika News

RBSE- कॉपियां जांचने वाले परीक्षक निडर, बोर्ड कार्य से डिबार का नहीं असर

locationअजमेरPublished: Oct 06, 2019 11:13:25 pm

Submitted by:

baljeet singh

संवीक्षा परीक्षा में फिर बढ़ गए परीक्षार्थियों के अंक, गलतियों के बावजूद नहीं होती पुख्ता कार्रवाई

RBSE- कॉपियां जांचने वाले परीक्षक निडर, बोर्ड कार्य से डिबार का नहीं असर

RBSE- कॉपियां जांचने वाले परीक्षक निडर, बोर्ड कार्य से डिबार का नहीं असर

सुरेश लालवानी. अजमेर.

माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान परीक्षाओं की उत्तरपुस्तिकाएं जांचने में बरती जाने वाली लापरवाही के हजारों मामले सामने आने के बाद भी बोर्ड परीक्षकों के सामने लाचार साबित हो रहा है। परीक्षकों के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई नहीं होने की वजह से परीक्षक गलतियां करने के बावजूद बेपरवाह बने हुए हैं।
उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा (री-टोटलिंग) की बदौलत इस साल भी प्रदेश के 15 से 20 हजार परीक्षार्थियों के अंक बढ़ गए हैं। यह आंकड़ा महज इस साल का ही नहीं है बल्कि पिछले अनेक वर्षों से यही हालात हैं। खास बात यह है कि उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा उन्ही विद्यार्थियों की होती है जिन्होंने इसके लिए आवेदन किया होता है। प्रति वर्ष एक से डेढ़ लाख परीक्षार्थी परिणाम आने के बाद अपनी उत्तरपुस्तिकाओं की नए सिरे से री-टोटलिंग करवाते हैं। जबकि बोर्ड की दसवीं और बारहवीं परीक्षाओं में विद्यार्थियों के बैठने का आंकड़ा 20 लाख से ज्यादा होता है।
25 हजार परीक्षक जुटाना बड़ी चुनौती
दरअसल बोर्ड परीक्षाओं की लगभग सवा करोड़ उत्तरपुस्तिकाओं को जंचवाने के लिए सरकारी विद्यालयों के लगभग 25 हजार व्याख्याताओं की सेवाएं लेता है। बोर्ड परीक्षकों को प्रति उत्तरपुस्तिका 14 रुपए मानदेय देता है। लेकिन संवीक्षा के तहत उत्तरपुस्तिकाओं की प्रतिलिपि विद्यार्थियों को उपलब्ध कराने और गलती रह जाने पर बोर्ड द्वारा जवाब-तलब करने की वजह से अधिकांश व्याख्याता बोर्ड की कॉपियां जांचने में रुचि नहीं दिखाते। राज्य सरकार द्वारा बाकायदा आदेश जारी कर सरकारी व्याख्याताओं को परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाएं जांचने के लिए पाबंद किया जाता है।
नहीं होती सीधी कार्रवाई
बोर्ड उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा के दौरान गलती करने वाले परीक्षकों को महज बोर्ड कार्य से एक साल से तीन साल तक डिबार कर सकता है। सरकारी व्याख्याता बोर्ड के अधीन नहीं होकर शिक्षा विभाग के कार्मिक होते हैं। लिहाजा उनके खिलाफ सीधी अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हो पाती। यही कारण है कि बोर्ड भी परीक्षकों के सामने लाचार है।
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सिर्फ री-टोटलिंग- पूनर्मूल्यांकन नहीं

संवीक्षा के तहत कॉपियों में दिए गए अंकों की महज री-टोटलिंग की जाती है। सवालों के सामने परीक्षकों द्वारा दिए गए अंकों का नए सिरे से जोड़ लगाने में ही एक से 40 अंक तक की गलतियां सामने आ जाती है। अगर कॉपियों को नए सिरे से दूसरे परीक्षकों से जंचवाया जाए तो हालात काफी दयनीय हो सकते हैं।
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