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खास खबर… प्रदेश में कितनी वनभूमि, कागजों में खंगाल रहा वन विभाग

विभाग के खाते में जंगलात् का नहीं इंद्राज, सिमटता जा रहा वन क्षेत्रउच्च न्यायालय ने मांगी तथ्यपरक रिपोर्ट, सुनवाई 27 जुलाई को

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खास खबर... प्रदेश में कितनी वनभूमि, कागजों में खंगाल रहा वन विभाग

सवाई माधोपुर के कुंडेरा रेंज इलाके में अवैध खनन से छलनी पहाड़ियां

रमेश शर्मा
अजमेर। प्रदेश में पौने पांच लाख हैक्टेयर से अधिक वनभूमि पर वन विभाग का अधिकार नहीं है, क्योंकि जमीन वन विभाग के खाते में दर्ज नहीं है। एक तरफ वन क्षेत्र सिमटता जा रहा है दूसरी तरफ अपनी जमीन होते हुए भी वनविभाग उस पर अपना हक नहीं जमा पा रहा है, नतीजा यह है कि केन्द्र और राज्य सरकार की संचालित वनसंरक्षण योजनाओं का ठीक से क्रियान्वयन नहीं कर पा रहा है। अब वनविभाग को अगले महीने 27 जुलाई को हाईकोर्ट को बताना होगा कि उसकी कितनी जमीन है। साथ ही टाइगर संरक्षण के लिए 1955 की स्थिति से पहले के नक्शे भी अदालत में प्रस्तुत करने होंगे।

पर्यावरण वन और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए वनभूमि का संरक्षित होना जरूरी है। लगातार अतिक्रमण, अवैध खनन, चराई और व्यावसायिक गतिविधियों के चलते वनभूमि का अमलदरामद यानी म्यूटेशन नहीं हो पाता। यह काम पिछले कई दशक से अटका हुआ है। इसका नतीजा यह है कि पर्यावरण और वन संरक्षण के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का भी क्रियान्वयन करने में मुश्किल आती है। राजस्व विभाग शेष वनभूमि को विवादास्पद मानकर ही राजस्व रिकोर्ड में दर्ज नहीं करता। विवाद के कई कारण माने जाते हैं, जैसे राजस्व रिकोर्ड में अनसर्वेड वनभूमि, चरागाह भूमि, आवंटन, खातेदारी, आबादी, अन्य विभागों के नाम दर्ज या अतिक्रमण आदि। म्यूटेशन नहीं होने के बावजूद वन भूमि पर जब भी कोई अवैध खनन या अतिक्रमण आदि होता है तो सीधे तौर पर जिम्मेदारी वनविभाग की होती है। यही नहीं अभयारण्य क्षेत्रों में निरंतर वन्यजीवों का शिकार किया जा रहा है। अभयारण्यों के कोर एरिया में लोग बसे हुए हैं। वन्यजीवों की जिंदगी में उनका गहरा दखल है। अनेक जगह गांववालों के पास हथियार भी हैं। इसी कारण वनक्षेत्र में अवैध खनन और मवेशियों की चराई बेधड़क होती है।

क्या है अमलदरामद

वन क्षेत्रों की भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में वन विभाग के खाते में दर्ज करने को ही अमलदरामद या म्यूटेशन कहा जाता है। वनभूमि के म्यूटेशन का अधिकार राजस्व अधिकारियों को है। राजस्थान वन अधिनियम में इसे आरक्षित या रक्षित वन घोषित किया जाता है। वन सीमा में मीनारें बनाकर वन क्षेत्र का सीमांकन किया जाता है। इस प्रक्रिया को वन बंदोबस्त कहते हैं।
संभाग स्तर पर होगी बैठक

अदालत ने राजस्व सचिव और वन सचिव को कहा है कि वे वन भूमि का डिमार्केशन कर उसका राजस्व रिकॉर्ड में इंद्राज कराएं। इसके चलते अवशेष वन भूमि के राजस्व अभिलेखों में अमलदरामद के शीघ्र निस्तारण के लिए संभाग स्तर पर गठित समितियों की बैठक बुलाई गई है, जिसमें राजस्व एवं भू प्रबन्धन विभाग के अधिकारी शामिल होंगे ।

कोर्ट ने उठाए ये सवाल

- वनभूमि का सीमांकन कर राजस्व रिकोर्ड में दर्ज क्यों नहीं है?
- वन क्षेत्र में खनन काम कैसे हो रहा है?

- पशुओं की चराई क्यों नहीं रोकी जा रही है?

- नेशनल पार्क में जीरो लाइन पर होटल के लिए किसने एनओसी दी है?
- नेशनल पार्क में खाद्यसामग्री व प्लास्टिक की बोतलें कैसे चली जाती है?
- क्या अभयारण्य क्षेत्र को साइलेंस जोन घोषित किया गया है?

इनका कहना है
वर्ष 1950 में राजस्थान में 13.5 प्रतिशत वन थे। अब ये मात्र 9 प्रतिशत रह गए। वहीं जनसंख्या इस दौरान 1.5 करोड़ से 7.5 करोड़ पहुंच चुकी है। वनों की सघनता 0.8 से घटकर 0.2 रह गई है। जो वनभूमि है वह भी अवैध खनन और अतिक्रमण से बर्बाद हो गई है। वनभूमि को अतिक्रमणमुक्त कर ही समस्या से पार पाया जा सकता है। बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में उद्यान, जंगल, हरियाली खेल मैदान आदि विकसित होते रहने चाहिए।

बाबूलाल जाजू, प्रदेश प्रभारी, पीपुल फॉर एनीमल्स
वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए समय समय पर अभियान चलाकर कारवाई की जाती है, जहाँ तक वन भूमि को अमलदरामद कराने की बात है तो इस दिशा में भी कार्य किया जा रहा है I
महेन्द्र शर्मा, उपवन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाई माधोपुर

क्रम संख्‍या-----जिला----------अमलदरामद से शेष वनभूमि
1-------------अजमेर-----------15058.268
2-------------भीलवाड़ा---------295.803
3-------------नागौर------------874.21
4-------------टोंक-------------1982.300
5-------------बीकानेर----------8935.542
6-------------चूरू--------------763.960
7-------------श्रीगंगानगर--------1473.183
8-------------हनुमानगढ़--------1003.684
9-------------भरतपुर----------453.610
10-----------धौलपुर-----------6208.736
11-----------करौली-----------11514.144
12-----------सवाईमाधोपुर-----12338.563
13-----------जयपुर-----------5237.271
14-----------झुंझुनूं-----------726.700
15-----------सीकर-----------1465.850
16-----------अलवर-----------90607.520
17-----------दौसा-------------336.080
18-----------जोधपुर-----------8944.270
19-----------बाड़मेर-----------1552.990
20-----------जैसलमेर----------2782.784
21-----------जालौर-----------2550.520
22-----------पाली-----------5978.044
23-----------सिरोही-----------6120.237
24-----------कोटा-----------7211.880
25-----------बारां-----------4622.070
26-----------बूदी-----------7212.959
27-----------झालावाड़------2023.340
28-----------उदयपुर-------104924.846
29-----------बांसवाड़ा-------6934.691
30-----------चित्‍तौडगढ़-----49813.846
31-----------डूंगरपुर---------46372.766
32-----------प्रतापगढ़ -------45022.151
33-----------राजसमंद--------14238.327
कुल भूमि --------475614.145