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जिंदगी संवरने की जगी आस, बेटियों की मदद को बढ़े हाथ

राजस्थान पत्रिका : खबर का असर , परिवार की मदद के लिए कई जने आगे आए

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जिंदगी संवरने की जगी आस, बेटियों की मदद को बढ़े हाथ

जिंदगी संवरने की जगी आस, बेटियों की मदद को बढ़े हाथ

अजमेर. सड़क किनारे फुटपाथ पर खिलौने बेचकर जुगाड़ की गाड़ी में ही जिन्दगी बसर करने वाले परिवार में बेटियों की पढ़ाई एवं उनकी माली हालत के चलते अब मदद के लिए हाथ उठने लगे हैं। राजस्थान पत्रिका की ओर से बुधवार को परिवार का दर्द प्रकाशित करने के बाद कुछ लोग आगे आए हैं।दो बेटियों-दो बेटों के साथ खिलौने बेचकर गुजारा करने वाले दयाराम व कमला की मदद के लिए लोहाखान निवासी यासीन खान ने आर्थिक मदद की। बुधवार को खाना बनाते समय गैस खत्म होने पर तत्काल सहायता राशि देकर परिवार को संबल दिया। कमला ने बताया कि बेटियों की पढ़ाई के लिए ही वह इन पैसों को काम में लेगी। उल्लेखनीय है कि राजस्थान पत्रिका के 30 अगस्त के अंक में ‘दुश्वारियों के बीच बेटियों की जिन्दगी संवारने का जुनून...’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया गया था। गौरतलब है कि आठवीं पास मां कमला दोनों बेटियों को फुटपाथ पर ही पढ़ाती है। बच्चों को काम में झोंकने की बजाय वह उन्हें शिक्षित करना चाहती है।

जुगाड की गाड़ी ही आशियाना

दयाराम ने बताया कि गाड़ी में ही चाय-खाना बनाने का सामान है। इसी में सो जाते हैं। वैशालीनगर, क्रिश्चियनगंज व आसपास के क्षेत्र में खिलौने बेचकर परिवार का गुजर-बसर करते हैं। जो बचत होती है, उसे कर्जा चुकाने में देते हैं। लॉकडाउन के बाद हालात कमजोर हो गई।

बच्चों की सुरक्षा की रहती है चिंता

दयाराम व कमला ने बताया कि रात होने पर वे मदारगेट व स्टेशन पर चले जाते हैं। वहीं गाड़ी खड़ी कर देते हैं। सभी वहीं सो जाते हैं। दयाराम ने बताया कि बच्चों व परिवार की सुरक्षा की चिंता रहती है। यह क्षेत्र रात में भी चमन रहता है। लोग आते-जाते रहते हैं, इसलिए वहां थोड़ी नींद निकाल लेते हैं।