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अक्षरधाम आतंकी हमले के जांबांज ने कहा- सेना बुलाए तो आज भी लगा देंगे जान की बाजी (देखें वीडियो भी)

सीआरपीएफ के सेवानिवृत्त महानिरीक्षक शर्मा ने की 37 साल देश सेवा, अक्षरधाम में आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन में सबसे पहले संभाला था मोर्चा

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सुरेश भारती. अजमेर.
ऐसा खूनी मंजर देख हर कोई डर जाए। दनदनादन बरसती गोलियां। लोगों की चीख-पुकार। खून से सना परिसर और जगह-जगह पड़े शव। एक ओर नागरिकों को बचाने की जिम्मेदारी तो दूसरी ओर आतंकियों को ‘ठिकाने’ लगाने की चुनौती। इस दौरान धैर्य, साहस, अनुभव, संयम और कत्र्तव्यनिष्ठा ने साथ दिया। इसी का नतीजा रहा कि आतंकियों को घेरकर सुरक्षा बलों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इस ऑपरेशन में नेशनल सिक्योरिटी के कमांडो ने भी मोर्चा संभाला। रातभर गोलाबारी होती रही। सुबह जाकर ऑपरेशन सफल हुआ।

यह कहना है अजमेर निवासी केन्द्रीय सुरक्षा बल के सेवानिवृत्त महानिरीक्षक एम. एम. शर्मा का। उन्होंने 24 सितम्बर 2002 को गुजरात के गांधीधाम स्थित अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमले के बाद मुठभेड़ में दहशतगर्दों को मार गिराने में भूमिका निभाई थी। अक्षरधाम की घटना के समय शर्मा गांधीनगर में सीआरपीएफ में डीआईजी के पद पर तैनात थे।

मोदी ने कहा था…कोई बच न पाए

शर्मा के अनुसार अपनी टीम के साथ अक्षरधाम मंदिर में मोर्चा संभाल रखा था। तभी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वायरलेस सैट पर निर्देश दिए कि कोई आतंकी बच नहीं पाए। नागरिकों की जान भी बचाएं। इस निदेश के बाद सुरक्षा बलों में और भी आत्मविश्वास बढ़ गया। इस आतंकी हमले में 38 लोगों की मौत हुई थी। इसमें दो पुलिसकर्मी व एक कमांडो भी शामिल था।

सेना के लिए देश की रक्षा सर्वोपरि

शर्मा ने कहा कि आज भारतीय सेना काफी मजबूत है। पहले खुली छूट नहीं थी। अब आतंकियों को घर में घुसकर मारा जा रहा है। सेना के बेड़े में अत्याधुनिक लड़ाकू विमान, हथियार और अन्य संसाधनों में इजाफा हुआ है। इससे सेना का मनोबल बढ़ा है। युवा जब तक राष्ट्र सेवा, सुरक्षा और समर्पण की सोच नहीं रखेगा। तब तक राष्ट्रवाद की जड़ें मजबूत नहीं होगी। धारा 370 हटने से भी भविष्य में काफी फायदा होगा।

देश सेवा के लिए धडक़ता दिल

राष्ट्रपति से तीन बार मेडल प्राप्त कर चुके शर्मा ने कहा कि वे भले ही सेवानिवृत्त हो गए,लेकिन आज भी सीने में देश सेवा के लिए दिल धडक़ रहा है। यदि सेना उन्हें फिर से बुलाए तो जान की बाजी लगाने को तैयार हैं। सीआरपीएफ में उन्होंने 22 साल की आयु में ज्वाइन किया था। इसके बाद 37 साल 5 माह के दौरान श्रीनगर, पंजाब, असम, मणिपुर, मेघालय व गुजरात में सेवाएं दी। गुरिल्ला पद्धति में मोर्चा संभालने में वे माहिर हैं। इसके लिए साल 1970 में महाराष्ट्र में गुरिल्ला वारफेयर को कोर्स किया।