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शौर्य गाथा: सोमलपुर की माटी को सलाम!

अरावली की पर्वत शृंखला की तलहटी में बसे छोटे से गांव सोमलपुर ने देश को कई जांबाज सैनिक दिए हैं। दुश्मनों से लोहा लेते हुए प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीदों के परिवारों की नई पीढ़ी देश पर कुर्बान होने को उत्सुक है।

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raghuveer singh

Jul 26, 2016

अरावली की पर्वत शृंखला की तलहटी में बसे छोटे से गांव सोमलपुर ने देश को कई जांबाज सैनिक दिए हैं। दुश्मनों से लोहा लेते हुए प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीदों के परिवारों की नई पीढ़ी देश पर कुर्बान होने को उत्सुक है।

भारतीय फौज में हिस्सा बनने के लिए यहां के युवा कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हर किसी का एक ही सपना है कि सोमलपुर की धरा का देश में नाम रोशन करना है। अपने पुरखों ने जो देश सेवा की सीख दी है उसे अमल कर वतन के खातिर मट मिटना है।

गांव में बना शहीद स्मारक माताओं को ऐसी संतान को जन्म देने की प्रेरणा दे रहा है जो परिवार, समाज से ऊपर उठकर देश की रक्षा के खातिर देश का सजग प्रहरी बन सके। साढ़े छह हजार की आबादी में 200 लोग सेना में रहे हैं। अजमेर शहर से सटे पैराफेरी गांव सोमलपुर को शहीदों के गांव के नाम से जाना जाता है।

इस गांव के 50 जवान आज भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं तो 150 सेवानिवृत होकर गांव में भावी सैनिक तैयार कर रहे हैं। सेना में देश की रक्षा के लिए शहीद हुए रणबांकुरों के स्मारक यहां के युवाओं को देश सेवा के लिए प्रेरित करते हैं।

गांव का इतिहास

गांव भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की दादी सोमल देवी के नाम से बसा है, जो तारागढ़ किले के ठीक नीचे स्थित है। इस गांव की माटी की तासीर है कि चौहान राजवंश से लेकर वर्तमान तक युवाओं में सैन्यकर्म के प्रति जज्बा है।

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