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अजमेर के इस गांव के थे प्रेमी युगल ढोला-मारू, पूरी दुनिया में मशहूर हुए इनके किस्से

राजस्थान के प्रेमी युगल के विवाह का साक्षी है पाषाण का तोरण द्वार। विवाह की रस्मों के दौरान हुआ था 72 मण लाल मिर्च का उपयोग।

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raktim tiwari

Feb 14, 2017

dhola maru belongs to baghera village

dhola maru belongs to baghera village

राजस्थान की वीर प्रसूता धरा शौर्य के साथ प्रेम और बलिदान की गाथाओं से भी भरी है। प्रेमी युगल ढोला-मारू के प्रेम और समर्पण कथा राजस्थानी लोक गीतों और किंवदंतियों के साथ आज भी युवाओं के हृदय को तरंगित कर देती है।

एक किंवंदती के अनुसार ढोला-मारू का विवाह अजमेर जिले के बघेरा गांव में हुआ था जहां आज भी पत्थर (पाषाण) का तोरण द्वार उनके प्रेम का मूक साक्षी है।

केकड़ी उपखण्ड में स्थित बघेरा गांव ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है। बताया जाता है कि रेतीले धोरों में उपजे प्रेम को ढोला-मारू ने बघेरा में ही परिणय के अटूट बंधन के रंग में रंगा था।

बघेरा गांव के मध्य में स्थित पाषाण का तोरण द्वार उनके प्रेम के साक्षी के रूप में विद्यमान है। करीब आठ सौ साल पुराने इस तोरण द्वार पर अजंता-एलोरा की तरह ढोला-मारू सहित कई तरह की मूर्तियां उकेरी गई हैं। तोरण द्वार का पत्थर भी नजदीकी गांव घटियाली का काम में लिया गया था।

बताते हैं कि तोरण मारने की रस्म व विवाह बंधन में बंधने के समय भोजन के दौरान 72 मण (2280 किग्रा) लाल मिर्च का उपयोग हुआ था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ढोला-मारू की शादी में कितने लोगों ने भोजन किया होगा। औसतन एक किग्रा सब्जी में 20 ग्राम लाल मिर्च डाली जाती है।

कौन थे ढोला-मारू!

आठवीं सदी की इस घटना का नायक ढोला राजस्थान में आज भी एक.प्रेमी नायक के रूप में याद किया जाता है। लोक गीतों में महिलाएं अपने प्रियतम को ढोला के नाम से संबोधित करती हैं। इस प्रेमाख्यान का नायक ढोला नरवर के राजा नल का पुत्र था जिसे इतिहास में ढोला व साल्हकुमार के नाम से जाना जाता है।

ढोला का विवाह बीकानेर के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री मारवणी के साथ हुआ था। उस वक्त ढोला तीन वर्ष का मारवणी मात्र डेढ़ वर्ष की थी, इसीलिए शादी के बाद मारवणी को ढोला के साथ नरवर नहीं भेजा गया। बड़े होने पर ढोला की एक और शादी मालवणी के साथ हो गई। बचपन की शादी ढोला भूल गया। मारवणी प्रौढ़ हुई तो पिता ने ढोला को नरवर संदेश भेजा।

दूसरी रानी मालवणी को ढोला की पहली शादी का पता चल गया। मारवणी जैसी बेहद खूबसूरत राजकुमारी कोई और न हो इस ईष्र्या के चलते राजा पिंगल तक कोई भी संदेश नहीं पहुंचने दिया। वह संदेश वाहक को ही मरवा डालती।

उधर मारवणी को स्वप्न में प्रियतम ढोला के दर्शन हुए और वह वियोग में चलती रही। बाद में पिता पिंगल ने चतुर ढोली को नरवर भेजा और गाने के माध्यम से ढोला को याद दिलाया और मारवणी ने मारू राग में दोहे बनाकर दिए।

बाद में संदेशवाहक ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया ऐसे सुहाने मौसम में ढोली की मल्हार राग का मधुर संगीत ढोला के कानों में गूंजने लगा और ढोला फन उठाए नाग की भांति राग पर झूमने लगा तब ढोली ने गाया 'ढोला नरवर सेरियां, धण पूंगल गळीयांÓ आखडिया डंबर भई-नयण गमाया रोय, क्यूँ साजण परदेस में, रह्या बिंडाणा होय। आंखें लाल हो गयी है ए रो रो कर नयन गँवा दिए है, साजन परदेस में क्यों पराया हो गया है। इसके बाद ढोला ऊंट पर सवार होकर मारू से मिलने के लिए रवाना हो गया।

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