यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों को प्रतिवर्ष पीएचडी प्रवेश परीक्षा कराने को कहा है। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय भी इसमें शामिल है। पहले कोर्स वर्क को लेकर कॉलेज और विश्वविद्याल में ठनी रही। तत्कालीन कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी के प्रयासों से पीएचडी के जटिल नियमों में बदलाव हुए। इसके बाद 2015 और 2016 और 2018 में परीक्षा कराई गई।
कोरोना ने लगाए ब्रेक पिछले तीन साल से विश्वविद्यालय शोध प्रवेश परीक्षा नहीं करा पाया है। पीएचडी करने के इच्छुक अभ्यर्थियों को इसका इंतजार है। शोध विभाग 2018 के अभ्यर्थियों को गाइड आवंटन और कोर्स वर्क करने में जुटा था। पिछले तीन साल में कई बार परीक्षा कराने की योजनाएं बनीं। कभी कोरोना संक्रमण तो कभी पुराने बैकलॉग का हवाला देकर परीक्षा नहीं कराई गई। तत्कालीन कुलपति प्रो.पी.सी.त्रिवेदी ने दिसंबर 2021 में परीक्षा कराने को कहा, पर विवि ऐसा नहीं कर पाया।
कई विद्यार्थियों को इंतजार विवि से सम्बद्ध कॉलेज और कैंपस में अध्ययनरत विद्यार्थियों को पीएचडी प्रवेश परीक्षा का इंतजार है। परीक्षा नहीं होने से कई विद्यार्थी तो दूसरे विवि में शोध करने चले गए हैं। परीक्षा नहीं होने से विवि के शोध कार्यों पर असर पड़ रहा है।
यूं है शोध की आवश्यकता -किसी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट संस्कृति के लिए -भौगोलिक स्थिति और पर्यावरण आकलन के लिए -स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा में नवाचार के लिए -महिला एवं बाल विकास योजनाओं की स्थिति
-आर्थिक एवं वित्तीय सुधार योजनाओं की समीक्षा -प्राकृतिक जलाशयों की स्थिति और सिंचाई योजनाओं के लिए -साक्षरता, चिकित्सा व्यवस्थाओं का आकलन फैक्ट फाइल… विवि की स्थापना-1 अगस्त 1987 पीएचडी प्रवेश परीक्षा की शुरुआत-2010
विवि ने कितनी बार कराई परीक्षा-5 पांच परीक्षाओं में बैठे अभ्यर्थी-10 हजार 34 साल में हुए शोध कार्य-9 हजार